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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
प्रेम और भक्ति से देता है, और कोई बेमन से, लोकदिखावे के लिये अथवा यशप्राप्ति के लिये देता है और कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो कुछ देने के स्थान पर नाना प्रकार के दुर्वचन प्रदान करते हैं । साधु सभी की भावनाओं के प्रकट होने पर समभाव से उन्हें सहन करता है । भले ही व्यक्ति परम प्रसन्नतापूर्वक दे अथवा कटु वचनों के साथ दे, या न भी दे, वह सभी स्थितियों में समभाव रखता है और यही भगवान का आदेश है कि याचना करने पर साधु के सम्मुख कैसी भी स्थिति क्यों न आये, वह समता रखे और गृहस्थ के कटु वचनों को भी ' याचना - परिषह' समझकर सहन करे । ऐसा करने पर ही वह संवरमार्ग का सच्चा पथिक बन सकता है तथा कर्मों की निर्जरा करता हुआ आत्म-कल्याण करने में समर्थ बनता है । सच्चा साधु ' याचनापरिषह' पर विजय प्राप्त करके ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है ।
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