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याचना परिषह पर विजय
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___ ब्राह्मण बड़े धर्म-संकट में पड़ गया और अत्यन्त कातर होकर बोला"बेटो ! तुम अभी बच्ची हो। भूख सहते-सहते वैसे ही तुम्हारा चेहरा कुम्हला गया है । क्या सोचती होओगी तुम कि ससुर के घर में कभी तुम्हें भरपेट अन्न भी नहीं मिला । भला तुम्हें भूखी रखकर मैं किस प्रकार अतिथि-सत्कार करूँ ?"
ससुर की बात सुनकर बहू गद्-गद् हो गई और बोली- "आपका इतना प्रेम ही मेरे लिए बहुत है पिताजी ! मेरा यह शरीर आपकी सेवा के लिए ही है । फिर आप सबको भूखे रखकर क्या मैं यह आटा खा सकूँगी? मेरा तो परम सौभाग्य होगा कि मेरे हिस्से का यह आटा अतिथि के उपयोग में आये।"
ब्राह्मण अपनी सती पुत्रवधू की यह बात सुनकर अपने आपको गौरवान्वित एवं भाग्यवान समझने लगा तथा उसे हृदय से आशीर्वाद देते हुए उसके हिस्से का आटा भी अतिथि के सम्मुख रख दिया।
अतिथि ने वह आटा भी खाया और उसे खाते ही वह पूर्ण तृप्ति का अनुभव करने लगा। यह देखकर ब्राह्मण परिवार अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुआ और अपने आपको सौभाग्यशाली मानने लगा।
यह देखकर अब अतिथि बोला- "द्विजप्रवर ! आज आपने जो अतिथिसत्कार किया है तथा अपनी शक्ति के अनुकल दान दिया है, वह अद्भुत है। आपके इस दान की बराबरी लाखों और करोड़ों रुपयों का दान भी नहीं कर सकता । आपके इस दान के फलस्वरूप देवता भी पुष्पवृष्टि कर रहे हैं तथा आपके दर्शन के लिए व्याकुल हैं । आप चारों ही प्राणी एक से एक बढ़कर हैं और महान् हैं । इस संसार में तो यह देखा जाता है कि भूख से विवेक का नाश हो जाता है और अतिथिसत्कार तो दूर, लोग आपस में ही लड़ मरते हैं । किन्तु आप लोगों ने स्वयं कई दिनों से निराहार रहकर भी आज मुझे जो दान दिया है, वह सैकड़ों राजसूय यज्ञों और अश्वमेध यज्ञों से बढ़कर है। और इसलिए वह देखिए, दैवी विमान आपके लिए प्रस्तुत है । आप चारों ही इस विमान में बैठकर अभी स्वर्ग जायेंगे।" यह कहते हुए वह अतिथि जो कि स्वयं विष्णु थे, अन्तर्धान हो गये और ब्राह्मण परिवार स्वर्ग की ओर गया।
यह कहते-कहते नेवला राजाधिराज युधिष्ठिर की यज्ञशाला में उपस्थित व्यक्तियों से बोला-"विप्रगण ! उस ब्राह्मण परिवार को मैंने स्वयं अपनी आँखों से विमान में बैठकर स्वर्ग जाते हुए देखा । मैं वहीं था और वहाँ दान में दिये जाने वाले सेर भर ज्वार के आटे के जो कण बिखरे हुए थे, उन्हें संघ रहा था। उन कणों की स्वर्गीय सुगन्ध से तो मेरा सिर सुनहरा हो गया और जहाँ वह आटा परोसा गया था, वहाँ लोटने से आटे के जो कुछ कण वहाँ बिखरे थे, उनके स्पर्श से मेरा आधा शरीर और सुनहरा हुआ। अपने आधे शरीर को जगमगाते हुए देखकर मेरी तीव्र
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