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________________ आनन्द प्रवचन | छठा भाग गुरुजी ने मुस्कुराकर भगत की प्रार्थना मान ली और उसके साथ चल दिये । घर पहुँचने पर श्रेष्ठि ने गुरु नानक की बड़ा श्रद्धा से आवभगत की तथा बोला"महाराज ! हमें कुछ उपदेश दें तथा सच्चा मार्ग बताएँ ।” ११६ नानक जी ने उसी समय अपने थैले में से एक छोटी सी सुई निकाली और सेठ से कहा - " भाई इस सुई को संभालकर रखना । अगले जन्म में जब हम पुनः मिलेंगे तो मैं इसे तुमसे वापिस ले लूंगा । पर इसकी संभाल पूरी रखना कहीं यह लापरवाही से खो न जाय । ” सेठ ने नानक जी की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया और गुरु का सेवाकार्य समझकर सुई घर के अन्दर ले गया तथा प्रसन्नतापूर्वक अपनी पत्नी से सारी बात बताई । साथ ही बोला – “ भागवान, इसे सम्हालकर कहीं तिजोरी आदि में रख लो।" सेठानी बड़ी चतुर एवं बुद्धिमान स्त्री थी । उसने पति की बात सुनी पर सुनकर बड़े आश्चर्य के साथ बोली - " आप कैसी बात कह रहे हैं ? हम इस सुई को भला अगले जन्म तक कैसे साथ रख सकेंगे ? मरने पर तो इस संसार की समस्त वस्तुएँ यहीं रह जाती हैं और आत्मा अकेली ही इस लोक से जाती है ।" अब सेठजी की समझ में बात आ गई और वे भी सुई की समस्या को लेकर चकरा गये । वे बोले - "चलो हम दोनों गुरुजी से ही उनके इस कार्य का रहस्य समझ लें | वे अभी दिवानखाने में ही विराजे हुए हैं ।" पति पत्नी दोनों ही अपने भवन के बाहरी हिस्से में आए और नानक जी से बोले - "गुरुदेव ! हम इस सुई को अगले जन्म तक किस प्रकार साथ रख सकेंगे ?” गुरुजी मुस्कराये पर उनकी बात का उत्तर न देते हुए उन्होंने एक प्रश्न पूछा - " श्रेष्ठिवर ! आपके महल के ऊपर ये सात झंडे कैसे लहरा रहे हैं ? इसका क्या कारण है ?" “महाराज ! मैंने अब तक ये सात करोड़ रुपया एकत्र कर लिया है। एकएक झंडा एक-एक करोड़ का चिह्न है । इसलिए ये सात झंडे भवन के ऊपर लगाये गये हैं ।” गुरु नानक आश्चर्य के भाव से बोले - " अरे ! आपके पास इतना धन है ? बड़े भाग्यवान् हैं आप । पर मुझे यह बताइये कि जब आप सात करोड़ रुपया संभाल सकते हैं और उसे अगले संसार में साथ ले जाने की आशा रखते हैं तो फिर मेरी इस छोटी सी सुई को भी साथ ले जाने में क्यों हिचकिचा रहे हैं ? क्या आपने इस धन के बारे में नहीं सोचा कभी कि इसे साथ कैसे ले जाएँगे ?" सेठ और सेठानी गुरु नानक की बात का रहस्य समझ गये । उन्होंने जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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