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सबके संग डोलत काल बली
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व्यापार करते हैं और जीवन भर करते रहते हैं। पर यह बताइये कि उससे आपको क्या लाभ होता है ? जिस प्रकार बच्चों की खापरखुटी' और मिट्टी का सामान वहीं पड़ा रह जाता है, उसी प्रकार क्या आपकी धन-दौलत, रुपये-पैसे और जमीन-मकान यहीं नहीं रह जाते ? उससे हुआ कौन सा लाम आपके साथ रहता है ? कुछ भी तो नहीं । आप बच्चों के ऐसे खेलों को देखकर हँसते हैं पर हमें आप पर भी इसी प्रकार हँसी आती है कि जैसे बालक अपना थोड़ी देर मनोरंजन करके या खेल खेल करके बिना कुछ प्राप्त किये अपने घर चले जाते हैं, इसी तरह आप भी सांसारिक व्यापार का खेल खेलकर खाली हाथ यहाँ से जाने की तैयारी कर लेते हैं। आगे कहा गया है :स्वप्नांचे जे सुख, दुःख झाले कांही;
जागृति तो नाहीं सांच भाव । मान लीजिये आप सो रहे हैं और स्वप्न में राजा, महाराजा या बड़े साहूकार बन गये हैं । लाखों रुपयों का लेन-देन है और उससे आप महान् सुख का अनुभव करते हैं । किन्तु आँख खुलते ही वह सुख कहाँ रहता है ?
इसी प्रकार कभी-कभी भयप्रद स्वप्न भी देखते हैं, जिसमें शेर आपकी ओर झपटता है या कोई राक्षस आपको दबोच ही लेता है उस समय आप चीखते-चिल्लाते हैं, रोते हैं तथा अत्यधिक दुखी होते हैं। पर जागने पर वह घोर संकट और आपका दुःख क्षण भर में ही गायब हो जाता है। क्योंकि आप जान लेते हैं कि सुख-दुःख स्वप्न के थे, वास्तविक नहीं । जाग जाने पर कहाँ का सुख और कहाँ का दुःख ?
इसी प्रकार मोहनिद्रा का हाल है। जब तक इस निद्रा में व्यक्ति पड़ा रहता है, तब तक उसे संसार के सुख-दुःख सच्चे सुख-दुःख महसूस होते हैं, किन्तु जब वह श्रावकधर्म या साधुधर्म अंगीकार कर लेता है तब ज्ञान के द्वारा समझता है कि संसार क्या है और इसमें प्राप्त होने वाले सुख और दुःख कैसे हैं ? वस्तु तत्वों का सच्चा स्वरूप समझने पर ही निस्सार पदार्थों की निस्सारता एवं नश्वरता का उसे मान होता है और सच्चे धन की पहचान होती है । एक उदाहरण से इसे और भी अच्छी तरह समझा जा सकता है ।
साथ न जावे कौड़ी गुरु नानक एक बार लाहौर आए। वहाँ के अनेक व्यक्ति उनके दर्शन करने आए और अपने आपको कृतार्थ समझते हुए घर लौटे ।
लाहौर का एक करोड़पति श्रेष्ठि भी उनके पास आया और बोला"भगवन् ! आप महान हैं । कृपा करके एक बार मेरे घर को अपने चरणों से पवित्र करें।"
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