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________________ सबके संग डोलत काल बली १११ नहीं रहती। एक बार जब हमारा चातुर्मास जोधपुर में था और हमारे प्रवर्तक, मरुधर केसरी जी म० समीप के ही एक गाँव में विराज रहे थे, तब वहाँ के व्यक्तियों ने उन्हें बिना अपराध के मारा-पीटा था। एक बार स्वयं मुझे भी यह परिषह सहन करना पड़ा था। किन्तु सन्तों को ऐसे परिषहों से घबराहट नहीं होती। गौतम बुद्ध के शिष्य आनन्द बड़े योग्य, विद्वान एवं समझदार साधु थे । एक वार उन्होंने बुद्ध से प्रार्थना की- "भगवन् ! मैं जनपद में विहार करके धर्म-प्रचार करना चाहता हूँ।" बुद्ध ने उनसे कहा- "तुम्हारा विचार तो ठीक है, पर उस देश के व्यक्ति अगर तुम्हारी निन्दा करेंगे और गालियाँ देंगे तो तुम क्या करोगे ?" आनन्द ने उत्तर दिया- "गुरुदेव ! मैं यह सोचूंगा कि ये लोग मुझे केवल अपशब्द ही कह रहे हैं, मारते तो नहीं।" बुद्ध ने पुनः प्रश्न किया- "अगर वे लोग तुम्हें मारेंगे तब क्या करोगे ?" “मैं सोचूंगा कि ये केवल मेरे शरीर को ही चोट पहुँचा रहे हैं, प्राण तो नहीं लेते।" "और अगर कोई तुम्हें जान से खत्म करने का प्रयत्न करेगा तब ?" "भगवन् ! उस समय मैं यह विचार करूँगा कि ये सिर्फ मेरे शरीर को ही नष्ट कर रहे हैं, आत्मा का तो कुछ भी नहीं बिगाड़ते।" आनन्द के ऐसे दृढ़ वचन सुनकर बुद्ध ने उन्हें जनपद (देश) में विहार करने और धर्म का प्रचार करने की आज्ञा दे दी। बन्धुओ, इस उदाहरण से आप समझ गये होंगे कि प्रत्येक आत्मार्थी सन्त को परिषहों का मुकाबला करने के लिए कितना दृढ़ होना चाहिए। 'श्री उत्तराध्ययन सूत्र' में इसी विषय को लेकर एक गाथा और कही गई है समणं संजयं दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज्ज संजए । -अध्ययन २, गा० २७ इन्द्रियों का दमन करने वाले साधु को यदि कोई किसी स्थान पर मारे तो वह साधु शान्त भाव से इस प्रकार विचार करे कि जीव का नाश तो कभी होता नहीं है और यह शरीर जो है, वह मेरा नहीं है। इस गाथा के द्वारा भगवान ने उपदेश दिया है कि कोई भी दुष्ट व्यक्ति ताड़ना करने के साथ ही साथ अगर साधु का वध करने के लिए उद्यत हो जाय, तब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004009
Book TitleAnand Pravachan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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