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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
और अनेक बार उनसे मुकाबला करना पड़ता है। स्वयं भगवान महावीर को भी अनेक परिषह सहन करने पड़े थे। उनके कानों में ग्वाले ने कीले ठोक दिये थे। भगवान पार्श्वनाथ को भी परिषह सहने पड़े थे। इस प्रकार जब तीर्थंकरों को भी परिषह सहने पड़े तो फिर अन्य साधुओं की तो बात ही क्या है।
अर्जुनमाली देवताधिष्ठित होने के कारण प्रतिदिन सात मनुष्यों की हत्या करता था। किन्तु पुण्य कर्मों के उदय से सेठ सुदर्शन के साथ वह भगवान महावीर के पास पहुँच गया। भगवान का उपदेश सुनकर उसने संयम ग्रहण किया और साधु बन गया । साधु बनने के पश्चात् उसने अपने पूर्वकृत पाप कर्मों का प्रायश्चित्त करने की दृष्टि से तपश्चर्या करना प्रारम्भ किया।
__ यद्यपि उसने जो नरहत्याएँ की थीं वे यक्ष के आधीन होकर ही की थीं, किन्तु फिर भी वह अपने आपको निर्दोष नहीं मानता था। वह सोचता था कि परतन्त्र होकर ही सही, पर पाप तो मेरे ही हाथों हुए हैं अतः उनसे छुटकारा तप के बिना नहीं हो सकता । यह विचार कर सन्त अर्जुनमाली ने बेला-बेला करके पारणा करने का निश्चय किया। वह बेला करता और पारणे के दिन भी किसी और सन्त का लाया हुआ अन्न ग्रहण न करके स्वयं ही भिक्षा लेने जाता था।
पर बन्धुओ ! उस समय अर्जुनमाली मुनि का क्या हाल होता था, यह आप जानते हैं ? उन्हें देखते ही लोग गालियाँ देते थे, पत्थर फेंकते थे या मार-पीट किया करते थे । कोई कहता- यह मेरे बेटे का हत्यारा है। कोई कहता-मेरे बाप को इसने मारा था और कोई कहता-मेरी माँ की इसने जान ली है । इस प्रकार जिनकी हत्याएँ हुईं थीं, उनके पारिवारिक जन जी भर कर अर्जुनमाली मुनि को कष्ट पहुँचाते थे।
किन्तु मुनि केवल यही विचार करते थे कि- "मैंने महा-पाप किये हैं। इनके रिश्तेदारों की हत्या की है। ये तो मुझे उससे बहुत कम कष्ट ही पहुँचाते हैं । कल मैंने आपको स्कन्दक मुनि के विषय में भी बताया था कि उन्हें पाँच सौ शिष्यों समेत घानी में पील दिया था। इसी प्रकार गजसुकुमाल मुनि के सिर पर उनके ससुर सोमिल ब्राह्मण ने मिट्टी की पाल बनाकर उसमें अंगारे भर दिये थे। किन्तु जो मुनि सच्चे होते हैं वे ऐसे परिषहों को देने वालों के प्रति भी क्रोध नहीं करते तथा मन, वचन एवं कर्म से उन्हें क्षमा प्रदान करते हुए विचार करते हैं कि उपसर्ग और परिषह पुराना ऋण है, जिसे हमें सहर्ष चुकाना चाहिए।
____ आज के युग में भी सन्तों को 'आक्रोश' एवं 'वध-परिषह' का सामना करना पड़ता है। हम लोग जब गाँवों में विहार करते हैं तो लोग हमें गालियाँ देते हैं तथा अपमानजनक वाक्य कहते हैं। कभी-कभी तो मार-पीट की नौबत भी आये बिना
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