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आनन्द प्रवचन | छठा भाग
तो बन्धुओ ! भगवान का उपदेश केवल साधु के लिये ही नहीं है कि वह किसी भी व्यक्ति के कटु एवं तीक्ष्ण शब्दों को मौन रहकर शांति से सहन करे, अपितु प्रत्येक मुमुक्षु के लिये है। जो भी व्यक्ति कषायों पर विजय प्राप्त करता है, उसके हृदय की मलिनता नष्ट हो जाती है तथा आत्मा निर्मल बनती है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा ही परमात्म-पद को प्राप्त करती है तथा दूसरे शब्दों में शुद्ध एवं निर्मल हृदय वाले व्यक्ति के मन में परमात्मा का निवास होता है । एक उर्दू भाषा के शायर ने अपने शेर में कहा है
दिल बदश्त आबूंद कि हज्जे अकबर अस्त । अज हजारों काबा, यक दिल बेहतर अस्त ।।
अर्थात् निर्मल एवं स्थिर जल में सूर्य की तरह शुद्ध मन वाले को परमेश्वर दिखाई देता है और उसके चरणों में हजारों तीर्थ हाजिर रहते हैं ।
___ शायर ने यथार्थ कहा है। वस्तुतः वही मन मन्दिर बन सकता है, जिसमें कषायों की मलिनता न हो और जो अपनी सम्पूर्ण चेतना को परमात्मा के चिन्तन में लगा दे । भक्ति और उपासना का सच्चा फल तभी मिलता है जबकि भक्त और भगवान के बीच कोई भी व्यवधान न हो । अन्यथा भक्ति, पूजा और उपासना करने के लिये तो व्यक्ति बैठ जाय किन्तु उसका मन इधर-उधर डोलता रहे तो आत्म-स्वरूप की अथवा परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी?
अल्लाह की इबादत
कहा जाता है कि एक बादशाह किसी एकान्त स्थान पर बैठे नमाज पढ़ रहे थे। इतने में एक स्त्री उधर आई और उनके 'जाये नमाज' पर पैर रखती हुई द्रत गति से किसी ओर चली गई।
कुछ समय पश्चात् वही स्त्री पुनः उधर से लौटी, पर तब तक बादशाह नमाज पढ़ चुके थे अत: उससे पूछ बैठे- "तू इधर कहाँ गई थी ?"
"अपने प्रेमी से मिलने ।" स्त्री ने निर्भीक होकर उत्तर दिया।
बादशाह को यह सुनकर क्रोध आ गया और वे उसे डाँटते हुए बोले-"अपने प्रेमी से मिलने के लिये तू इस प्रकार बेभान होकर चली कि तुझे मेरे 'जाये नमाज' का भी ध्यान नहीं रहा और उसे कुचलती हुई चली गई ?"
स्त्री ने उत्तर दिया- "जहाँपनाह, मैं तो एक सांसारिक पुरुष के ध्यान में ही ऐसी बेखबर हो गई कि मैं आपकी नमाज पढ़ने के लिये बिछी हुई चादर को न देख
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