________________
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्
१०५
अब राजा को कुछ झुंझलाहट हुई और वह बोला- "महाराज ! आप तो फक्कड़ हैं, पर मुझे तो समग्र राज्य-कार्य संभालना है। मैं कैसे अधिक समय तक अपने राज्य से दूर रह सकता हूँ ?"
"बस, तुममें और मुझमें यही अन्तर है राजन् ! मैं जिस प्रकार एक क्षण में जंगल से उठकर तुम्हारे महल में जाकर रह सकता हूँ, उसी प्रकार एक क्षण में तुम्हारे राजमहल को छोड़कर जंगल में आ सकता हूँ । इतने दिन मैं सुख-सुविधा के अनेक साधनों का उपभोग करता रहा पर आज मैं उन सब को पल भर में छोड़ आया हूँ और उनके लिए मेरे हृदय में रंचमात्र भी आसक्ति नहीं हुई। किन्तु तुम ऐसा नहीं कर सकते यानी अपने राज्य, अपने महल, अपने परिवार और अपने भोग-विलास के साधनों को कुछ समय के लिए भी त्याग नहीं सकते । इस प्रकार तुम आशाओं के दास हो और आशाएँ मेरी दासी हैं । मैं फकीर हूँ, मेरे लिए वन में खड़ा हुआ नीम का वृक्ष और राजमहल दोनों समान हैं, चाहे उत्तमोत्तम स्वादिष्ट पदार्थ खाने को मिलें या कंदमूल, मैं दोनों को ही समान भाव से खाता हूँ। किन्तु तुम ऐसा नहीं कर सकते । यही अन्तर तुम्हारे और मेरे बीच में है । बस तुम्हारे प्रश्न का उत्तर तुम्हें मिल चुका है, अब तुम जाओ ! मैं यहीं-कहीं किसी पेड़ के नीचे रहूँगा।"
राजा बड़ा शर्मिन्दा हुआ तथा उस वृक्ष के तले और राजमहल में भी समान एवं निरासक्त भाव से रहने वाले फकीर संत को नमस्कार कर धीमे-धीमे वहाँ से चल दिया।
कहने का अभिप्राय यही है कि जो प्राणी अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परिस्थितियों में समानभाव से रह सकता है तथा सुख एवं दुख को समभाव से ग्रहण करता है वही आशा, तृष्णा एवं इच्छाओं का स्वामी बनता है । ऐसा व्यक्ति ही निन्दा
और अपमानजनक शब्दों को क्रोध रहित होकर सुनता है एवं प्रत्युत्तर में मौन रहकर क्रोध करने तथा कटु-शब्द कहने वाले को क्षमा करता है।
एक बात और ध्यान में रखने की है कि क्रोध आत्मा की विभाव दशा है और क्षमा तथा शान्ति उसकी स्वभाव दशा । आत्मा विभाव दशा में अधिक समय तक नहीं रह सकती किन्तु स्वभाव दशा में जीवन पर्यन्त भी रह सकती है ।
___ मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ कि गर्मी में अधिक ताकत है या सर्दी में ? सर्दी में ताकत अधिक है। भले ही चार महीने एक सरीखी तेज गर्मी पड़े किन्तु एक घंटे भी जोरदार बारिश हो जाए तो वह ठण्डी पड़ जाएगी और गीली जमीन को सूखने में भी वक्त लगेगा । इसी प्रकार क्रोध गर्मी है और क्षमा सर्दी । क्रोध में आकर इन्सान चाहे जैसी अनकहनी कह दे किन्तु क्षमा का जल गिरते ही वह शान्त हो जाएगा, अधिक टिकेगा नहीं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org