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सफलता के बहुमूल्य सूत्र
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो ! .
इस संसार में प्रत्येक मनुष्य जीवन जीता है और अपने जीवन को सफल बनाने की कामना रखता है । किन्तु जीवन की सफलता किसमें है ? इस विषय पर गंभीर विचार करने वाले व्यक्ति बहुत कम पाए जाते हैं ।
अधिकांश मनुष्य जीवन की ऐहलौकिक सफलता के बारे में ही विचार करते हैं और उसी के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। कोई अधिक से अधिक धन कमाकर इकट्ठा कर लेने में जीवन का साफल्य मानते हैं, कोई यश-कीर्ति की प्राप्ति में, कोई परिवार की वृद्धि में और कोई अधिकाधिक भोगोपभोगों को भोगने में । .. किन्तु ऐसे समस्त व्यक्तियों की दृष्टि में शरीर और उसका सुख मुख्य होता है, तथा इस शरीर में स्थित आत्मा और आत्मा का सुख नगण्य होता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि वे शरीर और आत्मा को भिन्न-भिन्न तत्त्व नहीं समझते और शरीर को सुख पहुंचाना ही आत्मा को सुखी करना मानते हैं। किन्तु यह उनकी महा भयंकर भूल है। शरीर तथा आत्मा कभी एक नहीं हो सकते।
विद्वद्वर्य पडित शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने आत्मा और शरीर का अन्तर बताते हुए कहा है
सिद्ध विशुद्ध बुद्ध चेतन है सहज सुखों का सागर, अव्याबाध अरूप निरञ्जन साम्य सुधा का आगर । सप्त धातु निर्मित काया है, पुद्गल-पिण्ड विनश्वर, दोनों एक कदापि न होंगे समझ सयाने सत्वर ।।
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