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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग यानी कैसी भी विकट परिस्थितियां क्यों न सामने आएं', मन को ऊंचानीचा, अर्थात् डांवाडोल नहीं होने देना चाहिये ।
___ जब तक हमारा मन मलिन भावनाओं से भरा रहता है, प्रत्येक कषाय तेजी से अपना कार्य करता है । तुच्छ घटना भी क्रोध का संचार कर देती है, तनिक से धन की प्राप्ति होते ही गर्व की लहरें उठने लगती हैं, पराई उन्नति से ईर्ष्या की आग सुलग उठती है और कुबेर का खजाना पाकर भी लोभ का उदर नहीं भरता। अतः इन सबसे मुक्त होना ही कल्याण का मार्ग है, जिस पर साधक को अग्रसर होना चाहिये।
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