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सच्चे महाजन बनो !
शास्त्र में पढ़े जाते हैं कि अज्ञानी और प्रमादी अपने जीवन को त्याग, तप एवं अन्य गुणों से करें ।
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आत्माएं उनसे शिक्षा प्राप्त करके युक्त बनाते हुए श्रेष्ठता को प्राप्त
कवि भी आपको यही शिक्षा देते हुए कहता हैंकुछ पहलुओं पर तो गौर करो,
मत फूट बढ़ाकर शोर करो । भूले हैं, उनको धीरे से समझाओ
अब तो निज धर्म बचाओ । अब फूट की होली तुम कर दो,
हम एक हैं यह बोली कर दो । महाजन कहलाकर अब मत लोग हंसाओ
अब तो निज धर्म बचाओ ।
कवि का कहना है - भाइयो ! अब आपस में रही हुई फूट को समाप्त करो और एक होकर सामाजिक एवं धार्मिक उत्थान किस प्रकार हो सकता है, इस पर विचार करो । जब तक आपसी वैमनस्य के कारण एक दूसरे पर छींटकसी करने में लगे रहोगे, तब तक तुम्हें अन्य कर्मों को करने के लिए वक्त कहाँ से मिलेगा ? इसलिए व्यर्थ की निंदा-बुराई और एक-दूसरे पर आक्षेप करना छोड़ दो तथा समाज की भलाई किस प्रकार हो सकती हैं, इस पर विचार करो, उन सब पहलुओं पर सोचो जो कि समाज और धर्म के उत्थान में आवश्यक है ।
आज समाज में असंख्य ऐसे दीन व्यक्ति हैं, जो अपने होनहार बालकों को भी पैसे के अभाव में उच्च शिक्षा नहीं दिला सकते । ऐसे बालकों के लिए आपको छात्रवृत्ति आदि का प्रबन्ध करना चाहिए। दूसरे हमारी अनेक बहनें ऐसी हैं जो अपना गुजारा नहीं कर पातीं तथा नाना कष्टों में घिरी रहकर जीवन यापन करती है । अपनी जाति और कुल की परम्परा व गौरव को रखने के कारण दूसरी जाति की औरतों के समान घर से बाहर निकलकर मेहनत मजदूरी नहीं कर सकती। ऐसी बहनों को उनकी प्रतिष्ठा रखते हुए आप गुजारे के साधन में जुटा दो और उसे सहारा दो। इसी प्रकार अनेक वृद्ध दंपति भी समाज में होते हैं, जिनके कमाने वाला पुत्र नहीं होता या मर जाता है, उनको भी सहारा देना आवश्यक है तथा उनके लिये आश्रमों के समान किसी संस्था का निर्माण करना जरूरी है ।
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इसी प्रकार के समाज कल्याण के कार्य आपको अवश्य करने हैं तथा अपने जैनत्व और जैनधर्म को दीप्त करना है । आपको शायद ध्यान होगा कि पहले जैन
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