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________________ सच्चे महाजन बनो ! ३३५ तो बंधुओ, ऐसे-ऐसे महापुरुषों के उदाहरण व्यक्तियों को परोपकार की शिक्षा देते हैं तथा दान के ज्वलंत आदर्श प्रस्तुत करते हैं । मैं तो आपको बहुत साधारण से त्याग और सहृदयता लिए अपील कर रहा हूँ। धन्ना और अरणक सार्थवाह श्रावक थे लेकिन अपने जाति-माइयों का कितना भला करते थे ? आप भी उन्हीं के वंशज हैं अतः अपने पूर्वजों के पदचिह्नों का यथाशक्य अनुसरण आपको करना ही चाहिए। ऐसा करने पर ही आपके समाज का भला होगा तथा धर्म का गौरव बढ़ेगा। किसी अन्य कवि ने भी लिखा हैपर का दुख देख सहाय करो, बिगड़े नहीं धर्म उपाय करो। शुभ करणी अवसर पाय करो, ___ इतनी वय बीत गई सो गई। जिनराज भजो अहंकार तजो, पछतावो नहीं जो भई सो भई । कवि का आशय यही है कि मनुष्य पर-दुःखकातर बने तथा अविलम्ब दूसरों के दुःखों को मिटाने के लिए तत्पर हो जाय । वह अपने कर्तव्य का पालन इस प्रकार करे कि धर्म की महत्ता घटे नहीं वरन बढ़ती चली जाय । वह आगे कहता है-जो उम्र बीत गई सो तो गई, उसके लिए पश्चात्ताप करने की जरूरत नहीं है । आवश्यकता यही है कि अब अवसर पाते ही शुभ-करणी की जाय तथा अहंकार का त्याग करके प्रभु के भजन में चित्त लगाया जाय । इस संसार में अहकार सब अनर्थों की जड़ है । जिसके हृदय में यह घर कर लेता है, उसे कहीं का भी नहीं छोड़ता । रावण, कंस एवं दुर्योधन आदि अपने अहंकार के कारण ही दोनों दीन से गये थे । अहंकार अन्य दुर्गुणों का राजा भी है। जब यह आता है तो अकेला नहीं आता है। सर्वप्रथम तो उसका वह साथी जिसे छिद्रान्वेषण कहा जा सकता है, वह आता है और उसकी सहायता से अहंकार औरों के दोष देखना प्रारम्भ करता है। __ इस विषय में कवि सुन्दरदास जी ने एक पद्य में लिखा हैअपने न दोष देखे पर के औगुण पेंखे, दुष्ट को स्वभाव, उठि निवा'ही करत है। जैसे कोई महल संवारि राख्यो नीके फरि, कोरी तहां जाय छिा दूंढतं फिरत है ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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