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मिलें कब ऐसे गुरु ज्ञानी ? दिखा दूंगा। मुझे तो सारे संसार और धन-दौलत, सभी से विरक्ति हो गई है।" पत्नी ने कहा
"ठीक है देख गी कि किस प्रकार की विरक्ति तुम्हारे दिल में है ?"
पत्नी ने कुछ विचार किया और रात्रि होने पर पान खाकर उस आधे चबाए हुए पान की एक गोली बनाकर अपने पति के पलंग के पास डाल दी। प्रातःकाल जब उसका पति उठा तो उसने पलंग के समीप उस गोली को पड़ी हुई देखी।
___ पति को उसे देखते ही बड़ी चिन्ता हुई कि यह माणिक यहाँ कैसे पड़ा है ? क्या घर में रात को चोर घुस आए थे ? उसी क्षण उसने पत्नी को आवाज लगाई और कहा-''अरे भागवान ! हमारे तो तकदीर फूट गये। रात को घर में चोर घुसकर सब ले गए हैं शायद ! देखो तो यह माणिक यहाँ गिर पड़ा है।
पत्नी पति की बात सुनकर हंस पड़ी और बोली-''जरा माणिक उठाकर तो देखो।"
पति ने लपककर उसे उठाया, पर वह तो पान की गोली थी अत: गीलीगीली लगी। वह पूछने लगा-"यह क्या माजरा है ?"
पत्नी ने कहा--- "मैंने तुम्हारी परीक्षा ली थी कि तुम्हें धन-दौलत से कितनी विरक्ति हुई है ? अगर वास्तव में ही तुम विरक्त हो गए होते तो यहाँ चाहे माणिक होता या मिट्टी, चोर आते या न आते, तुम्हें क्यों चिन्ता होती ? क्या यही तुम्हारे सन्यासी बनने के लक्षण हैं ?
यह सुनकर पति बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसने उसी दिन से साधु बनने की धमकियाँ देना बन्द कर दिया।
मराठी भाषा में भी कहा है"ज्याचे मन नाही लागले हातासी, त्याने प्रपंचासी त्यागू नये ।"
अर्थात्-जिसका दिल काबू में नहीं है और मनोवृत्ति शांतिपूर्ण नहीं है, उसे साधुपना नहीं लेना चाहिये । क्योंकि अगर मन पर वश नहीं रहेगा तो साधुत्व का पालन भी वह नहीं कर सकेगा और जगत में हंसी होगी।
वस्तुतः मुनिवृत्ति का पालन करना कोई हंसी-खेल या साधारण बात नहीं है। मन में अनाशक्ति का भाव उत्पन्न होना और जन्म-जन्मान्तरों के मोहमय संस्कारों पर विजय प्राप्त करना बड़ा कठिन है। इसके लिये गंभीर साधना की आवश्यकता होती है। निर्बल आत्माएं साधना के मार्ग पर दृढ़ता से नहीं बढ़
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