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मिलें कब ऐसे गुरु ज्ञानी ?
धर्मप्रेमी बंधुओ, माताओ एवं बहनो !
____संवर तत्त्व के सत्तावन भेदों में बाईस परिषह आते हैं और हम क्रम से उनके विषय में आपको बता रहे हैं। कल दसवें परिषह के विषय में कहा गया था और आज ग्याहरवे को लेंगे । ग्यारहवें परिषह का नाम है-'शय्या परिषह ।' - इस विषय में श्री उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है--
उच्चावयाहिं, सेज्जाहि, तवस्सी भिक्खु थामवं । नाइवेलं विहन्निजा, पावदिट्ठी विहन्नई ।।
-अध्ययन २. गा. २२ अर्थात्-ऊँची नीची शय्या आदि से साधु अपने स्वाध्याय आदि के समय का उल्लंघन न करे किन्तु तपस्वी साधु उस परिषह के सहन करने में अपने आपको शक्तिशाली बनाये । जो साधु पापदृष्टि होता है वह संयम का उल्लंघन कर देता है।
भगवान महावीर का फरमान है कि मुनि को विचरण करते समय कहीं पर ऊँची और कहीं पर नीची जगह भी बैठने और सोने के लिये मिलती है। कहीं पर फर्श पक्का होता है, कहीं कच्चा और कहीं तो केवल रेत ही बिछी हुई होती है। अधिक क्या कहें, कभी-कभी तो भीषण गर्मी में भी हमें आपके मोटर गैरेज में ठहरना पड़ जाता है। तो ऐसी स्थिति में भी भगवान का आदेश है कि साधु जैसा भी स्थान मिले, वहाँ ठहरे और ऊंची या नीची जगह भी प्राप्त होती है वहाँ समभाव पूर्वक सोये। किन्तु शैय्या के कष्ट से अपने स्वाध्याय आदि के समय का उल्लंघन न करे । जो ऐसा करता है वह पापदृष्टि कहलाता है ।
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