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________________ साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय २७६ ___अनार्य स्थानों के व्यक्ति, और व्यक्ति ही क्या वहाँ रहने वाले जैन भी अपने जीवन में यह नहीं जान पाते कि धर्म क्या है और उसकी आराधना किस प्रकार की जाती है ? और तो और, उन जैन कहलाने वाले व्यक्तियों के बालक तो यह भी नहीं जानते कि हमारे जैनधर्म में साधु भी होते हैं। इसलिये ऐसे स्थानों पर साधु को भ्रमण करके उन नामधारी जैनियों को कम से कम यह तो बताना ही चाहिये कि हमारा जैनधर्म क्या है ? उसके सिद्धान्त क्या हैं और उनका पालन करने के लिये किस प्रकार त्याग नियम अपनाना चाहिये ? तो ऐसे अनभिज्ञ क्षेत्रों में विरले साधु-साध्वी ही पहुँच पाते हैं । उदाहरण स्वरूप हमारे श्रमण संघ की परम विदुषी महासती जी श्री उमरावकु वर जी महाराज 'अर्चना' ने करीब तेरह वर्ष पूर्व अपनी शिष्याओं के साथ काश्मीर-भ्रमण किया था। उस समय श्रमण संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज विद्यमान थे और उनकी शुभकामना, आज्ञा तथा प्रेरणा लेकर ही पंडिता सती जी ने काश्मीर प्रदेश की महान् कष्टकर यात्रा कमर कसकर प्रारंभ कर दी थी। __अभी करीब दो वर्ष पहले सांडेराव (राजस्थान) में जो प्रांतीय साधु-सम्मेलन हुआ था, उस समय सती 'अर्चना' जी से वार्तालाप के समय उन्होंने मुझे अपनी हिमाचल एवं काश्मीर यात्रा के कुछ अनुभव सुनाए थे और कुछ उनके प्रकाशित संस्मरणों से भी मालूम हुआ था कि उस यात्रा के दौरान सभी प्रकार के परिषहों का उन्हें डटकर मुकाबला करना पड़ा था। क्ष धा, पिपासा एवं शीत का तो पूछना ही क्या है। उन्होंने बताया था कि शिमला से बिलासपुर जाते समय करीब ६० मील के लम्बे मार्ग पर केवल दो बार आहार प्राप्त हुआ था और ऊपर से विकट पहाड़ी चढ़ाई वाला रास्ता । इसके अलावा भी अनेकों बार कई-कई दिन तक केवल मक्की के फूलों को खाकर भी समय गुजारना पड़ता था। वैसे भी उधर मोटी रोटियां और 'कड़म' नामक पत्ते का केवल नमक डाला हुआ साग मिलता था। इसी प्रकार उन्हें मार्ग के कष्ट भी कम नहीं उठाने पड़े और दोषों से बचने के लिये शार्टकट मार्ग को छोड़कर अत्यधिक लम्बे मार्गों को तय करना पड़ा। यथा-विलासपुर से भाखड़ा नंगल केवल ३६ मील है किन्तु बीच में दरियाव था और साधु के लिये कच्चे पानी का स्पर्श वर्जित है अतः उन्हें पहाड़ियों का चक्कर काटते हुए करीब १५० मील चलकर भाखड़ा नंगल पहुंचना पड़ा। किन्तु वह काश्मीर प्रदेश जिसमें राम को मानने वाले पंडित राम-नवमी के दिन भी अपने कार्यों से छुट्टी पाकर उस छुट्टी के दिन जी भर कर शिकार करते हैं तथा शिवरात्रि को शिव के मंदिर में मांस और मछली चढ़ाते हैं, वहां भ्रमण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004008
Book TitleAnand Pravachan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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