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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग कवि ने अपने पद्य में प्रत्येक मनुष्य-जन्म प्राप्त करने वाले जीव को चेतावनी दी है कि-"भोले प्राणी ! इस दुर्लभ जीवन को प्राप्त करके तू अपने आपको मत भूल, अर्थात् अपनी आत्मा के कल्याण का सदा ध्यान रख । अगर तूने यह अमूल्य अवसर खो दिया तो फिर जन्म-जन्म में तुझे पछताना पड़ेगा। . वे कहते हैं- "तू सत्संगति में रह तथा जितना भी हो सके त्याग-तपस्या को अपना । इसके अलावा सबसे बड़ी बात तो यह है कि तू सम्यज्ञान की प्राप्ति करने का प्रयत्न कर जिससे सही मार्ग को खोज सके । आत्मोन्नति का सही मार्ग हैहृदय में करुणा की भावना रखते हुए अन्य प्राणियों पर दया करना, जिह्वा से सदा सत्य-भाषण करना, कोई भी अदत्त वस्तु ग्रहण नहीं करना तथा शील-धर्म की आराधना करते हुए संसार के प्रत्येक पदार्थ को 'पर' समझकर उनसे मोह एवं ममता को हटा लेना।
आगे कहा गया है -हे जीव ! अगर तू इस प्रकार विरक्ति-भाव धारण करके शुभ क्रियाएं करेगा तो निश्चय ही मोक्ष-पद की प्राप्ति कर लेगा।
तो बंधुओ, आप समझ गए होंगे कि आत्मोन्नति का मार्ग क्या है और उस पर किस प्रकार दृढ़ता से चला जा सकता है ? वैसे मेरा आज का विषय शीत-परिषह चल रहा था और उसके विषय में पूर्व में बता दिया गया है। किन्तु प्रसंगवश आपको भी अपने कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा दी है अगर इसे आप अमल में लायेंगे तो इस लोक और परलोक में भी सुख की प्राप्ति करेंगे ।
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