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कांना प्राप्त होता है तथा मेरा संपादन काल का काफी भाग उनके सानिध्य में व्यतीत होता है।
अन्त में केवल यही कि 'आनन्द-प्रवचन' के पिछले चार भागों के समान ही पाठक इसे भी पसंद करेंगे तथा. इसमें रही हुई त्रुटियों को क्षमा करते हुए राजहस के समान सार-तत्व को ग्रहणकर अपना जीवन बनाएंगे। तभी मैं अपना परिश्रम सार्थक समझूगी।
· कमला जैन 'जीजी' एम० ए०
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