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आनन्द प्रवचन | पांचवां भाग भवजल तरण हरण अघ पुंज यही, ___सरण सहाई उर सुबुद्धि भरन है। कहे अमोरिख हरीकेशी ऋषिराय धन्य,
संवर अराधी मेट्या जनम मरन है। कवि श्री कहते हैं - संवर की क्रियाएं अन्य समस्त क्रियाओं में सर्वोत्तम हैं और संवर का मार्ग संसार के समस्त दुःखों और दोषों को नष्ट करने वाला है ।
इतना ही नहीं, संवर समस्त कर्मदलों को हटाने वाला, आत्माओं को शांति और शीतलता पहुंचाने वाला, विपत्तियों के समूह को जलाने वाला तथा सभी प्रकार से आनंद मंगल करने वाला होता है।
__ आगे कहा है-संवर का आराधन संसार-सागर से पार उतारता है, पापों के पुजों को नष्ट करता है तथा हृदय को सुबुद्धि से भरने में सहायक बनता है ।
कवि ने हरिकेशी मुनि को पुनः पुनः धन्य कहा है क्योंकि उन्होंने जाति और कुल से हीन होने पर भी संवर धर्म की आराधना करके सदा के लिये जन्म और मरण से मुक्ति प्राप्त कर ली।
बंधुओ, आपके मन में विचार आ सकता है कि अपनी आत्मा को संसार-मुक्त करने वाले तो सभी महापुरुष संवर की आराधना करते हैं, फिर विशेष रूप से हरिकेशी मुनि का ही उल्लेख कवि ने क्यों किया ?
इस विषय में हम यही कह सकते हैं कि जो व्यक्ति आर्यक्षेत्र, आर्यजाति और उत्तम कुल में जन्म लेता है उसमें बचपन से ही अच्छे संस्कार आ सकते हैं और वयः. प्राप्त होने पर भी वह सहज ही धर्म-मार्ग को अपना सकता है। दूसरे शब्दों में सभी उत्तम साधन सुलभ होने पर व्यक्ति सहज ही उत्तम मार्ग पर चल भी सकता है।
किन्तु हरिकेशी जैसा चांडाल कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति जो कि धर्मअधर्म क्या होता है, आत्मा-परमात्मा का क्या महत्व होता है तथा आश्रव, संवर और निर्जरा किस बला का नाम है, यह स्वप्न में भी नहीं सोच पाता पर फिर भी जब वह आत्म-मुक्ति के मार्ग को पहचान लेता है तथा सच्चे धर्म को अपनाकर पूर्ण दृढ़ता से उस पर चलता हुआ आत्म-कल्याण कर लेता है तो उसका यह कार्य सराहनीय माना जाता है। जिस प्रकार धन-सम्पन्न व्यक्ति अगर लाख रुपया दान करता है तो उसका उतना महत्व नहीं हो सकता जितना एक दरिद्र व्यक्ति का स्वय अभाव- होने पर भी दो रुपये दान में देना महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय होता है।
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