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चिन्तन का महत्त्व
कीर्ति आदि की प्राप्ति के लिये विचार करना, योजनाएं बनाना और मंसूबे बांधना . अशुभ चिन्तन है | क्योंकि इस प्रकार की समस्त उपलब्धियाँ प्रथम तो क्षणभंगुर है, दूसरे विभिन्न पापों के द्वारा प्राप्त होने वाली हैं । तो जिन सिद्धियों के लिये नाना प्रकार के मानसिक और शारीरिक पाप किये जायें वे सिद्धियाँ अथवा उपलब्धियाँ आत्मा को अक्षय सुख की प्राप्ति कैसे करा सकती हैं ? उलटे वे आत्मा को पाप कर्मों के बंधनों से जकड़ देती हैं और फिर आत्मा अनन्त काल तक उनसे छुटकारा प्राप्त नहीं कर पाती । अतः धन, वैभव, पुत्र, पौत्र, ख्याति एवं प्रतिष्ठा आदि के लिये निरंतर सोचना-विचारना अशुभ चिंतन कहा जाता है ।
आप जानते ही हैं कि धन इकट्ठा करने के लिये व्यक्ति अनेक प्रकार की बेईमानियां करता, झूठ बोलता है और अनीतिपूर्ण कार्य करने में जरा भी संकोच नहीं करता । इसी प्रकार ख्यातिलाभ के लिये अथवा वाह-वाही प्राप्त करने के लिये वह औरों से इर्ष्या, द्व ेष और जलन रखता हुआ उन्हें हीन साबित करने का प्रयत्न करता है । अपने आपको ऊँचा साबित करने की भावना ही क्रोध, कपट और द्वेषादि का कारण बनती है जिससे कर्मों का बंधन होता है और यह सब अशुभ चिन्तन के कारण घटता है ।
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इसके विपरीत शुभचिन्तन जीवन को त्याग और निरासक्ति के मार्ग पर बढ़ाकर उन्नत बनाता है। शुभ चिन्तन मानव के मस्तिष्क और मन में यह विश्वास जमा देता है कि धन, वैभव, सतान, मान, मर्यादा आदि समस्त सांसारिक उपलब्धियां अशाश्वत हैं और एक दिन इनका वियोग होना है। शुभ चिन्तन मनुष्य को यह भी प्रेरणा देता है कि उन उपलब्धियों के इसके पूर्व कि वे उन्हें छोड़ें अगर वह स्वयं उन्हें छोड़ देता है तो उत्तम है । एक छोटा-सा उदाहरण है—
त्याग करता हूँ !
एक जाट का विवाह किसी सुन्दर लड़की से हुआ । किन्तु विवाह के कुछ समय पश्चात् ही उसे मालूम हो गया कि उसकी पत्नी का शरीर जितना सुन्दर है, मन उतना ही असुन्दर है । अर्थात् वह सच्चरित्र नहीं, वरन दुश्चरित्र है । यह मालूम होते ही अगले दिन प्रातःकाल जबकि उसकी स्त्री पानी भरने के लिये कुए पर गई हुई थी, वह बाहर चबूतरे पर ही एक लाठी लेकर बैठ गया और ज्योंही पत्नी पानी भरकर लौटी जाट ने लाठी के प्रहार से उसके मस्तक पर रखे हुए घड़े को फोड़ दिया और गालियाँ देने लगा । शोरगुल सुनकर मुहल्ले के लोग इकट्ठे गए और झगड़े का कारण पूछने लगे ।
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