________________
८४
आनन्द-प्रवचन भाग-४
इस प्रकार सच्चा सुख केवल मुक्त अवस्था प्राप्त कर लेने में है । आत्मा जैसे-जैसे पर पदार्थों पर से अपनी ममता हटाता जाएगा तथा आत्म-स्वरूप में लीन होता जाएगा, वैसे ही वैसे वह सच्चे सुख की प्राप्ति करता जाएगा। . अभिप्राय यही है कि सुख संसार के भोगोपभोगों के पदार्थों का संचय करने में नहीं अपितु उनका त्याग करने में है। जिनके हृदय में धन के प्रति अथवा भोगोपभोगों की वस्तुओं के प्रति ममत्त्व नहीं होता वे सर्प के द्वारा छोड़ी हुई केंचुली के समान अपने समस्त वैभव का क्षण-मात्र में ही त्याग कर देते हैं।
प्राचीन काल की एक ऐतिहासिक घटना है। कन्नौज देश के एक राजा थे, जिनके दो पुत्र थे। बड़े पुत्र का नाम राज्यवर्धन था और छोटे का हर्षवर्धन ।
संयोगवश जिस समय कन्नौज के राजा मृत्युशैय्या पर पड़े थे, उस समय युवराज राज्यवर्धन अपने राज्य से कहीं दूर गये हुए थे। अतः राजा ने अपने लघु पुत्र हर्षवर्धन को अपने समीप बुलाकर कहा- "पुत्र, मैं अपने सम्पूर्ण राज्य का तुम्हें ही अधिकारी बनाता हूँ। इसकी रक्षा करना और प्रजा का भली-भाँति पालन करना । इतना कहने के पश्चात् राजा के प्राण पखेरू उड़ गए।
राजा की मृत्यु के पश्चात् राज्य के मंत्री तथा सेनापति आदि कर्मचारियों ने हर्षवर्धन से प्रार्थना की--"अब आप राजमुकुट धारण करके विधिवत् अपनी जिम्मेदारी सम्हालिये तथा प्रजा का पालन कीजिये !"
किन्तु हर्षवर्धन ने उत्तर दिया-"यह कैसे हो सकता है ? राज्य का अधिकारी सदा बड़ा पुत्र होता है अतः मेरे भाई राज्यवर्धन ही राज्य-कार्य सम्भालेंगे तथा राजा बनेंगे । मुझे तो इसी बात की बड़ी खुशी है कि मैं छोटा हूँ और राज्य के समान भारी परिग्रह को अपनाने से बच रहा हूँ।" हर्षवर्धन की बात सुनकर सब चुप हो गए। ___कुछ दिनों के पश्चात् कार्य सम्पूर्ण हो जाने पर राज्यवर्धन पुनः अपने राज्य में लौटे । उन्होंने आते ही अपने छोटे भाई से अत्यन्त प्रेम तथा आग्रहपूर्वक कहा- "भाई, राज्यमुकुट धारण करने में तुमने इतनी देरी क्यों कर दी । अब शीघ्रातिशीघ्र राज्य सम्हालो और धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करो।
पर बड़े भाई की बात सुनकर हर्षवर्धन ने उत्तर दिया – “यह कैसे हो सकता है ? राज्य के अधिकारी आप हैं, अतः कृपा करके आप ही मुकुट
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org