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________________ १२ आनन्द-प्रवचन भाग-४ इस प्रकार कारूँ को सुख के पश्चात् दुख और दुख के पश्चात् सुख के दौर से गुजरना पड़ा। जब तक उसके सातावेदनीय कर्मों का उदय रहा, तब तक तो वह संसार का सबसे बड़ा दौलतमंद बना रहा और ज्यों ही असाता वेदनीय कर्म उसके उदय में आए, वह पराजय और जीवित जला दिये जाने के दण्ड का भागी बना। __इस उदाहरण से स्पष्ट है कि सुख सांसारिक पदार्थों में नहीं है । अगर वह धन से प्राप्त होता तो कारू जोकि संसार की सबसे अधिक दौलत का स्वामी था, क्यों दुखी होता ? सुख स्वजनों के अथवा मन के अनुकूल पत्नी को प्राप्त कर लेने में भी नहीं है अन्यथा कोई यह क्यों कहता घर की नार बहुत हित जासौं, रहत सदा संग लागी । जब ही हंस तजी यह काया, प्रेत प्रेत कह भागी । पद्य में पति के मरने के बाद पत्नी की भावनाओं का परिवर्तन बताया गया है किन्तु प्रत्यक्ष में हम देखते हैं कि उसके जीवित रहते हुए भी अनेक स्त्रियाँ बदल जाती है तथा पति को धोखा देती हैं। राजा भर्तृहरि का उदाहरण जगत-प्रसिद्ध है कि वे अपनी असाधारण रूपवती एवं मधुरभाषिणी रानी पिंगला के मोह में पड़कर उसके क्रीत दास बन गए। किन्तु वही पिंगला व्यभिचारिणी साबित हुई और राजा भर्तृहरि अपनी प्राणप्रिय पत्नी के दुराचरण के कारण संसार से विरक्त हो गये तथा अपना समस्त राज-पाट त्यागकर योगी बन गए। उनकी घोर विरक्ति का परिचय उनके सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'वैराग्य-शतक' में मिलता है । संसार के ऐसे-ऐसे उदाहरणों को देखकर ही किसी ने सत्य कहा है त्रियाश्चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं, देवो न जानाति कुतो मनुष्यः ॥ तो मैं आपको यह बता रहा था कि इस संसार में धन, आरोग्यता, पत्नी, पुत्र अथवा धनार्जन कराने वाली विद्या आदि से कभी भी सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि कि ये सब अस्थिर हैं तथा 'पर' हैं। सच्चा सुख कभी पराश्रित नहीं होता। सच्चा सुख कहाँ है, और कैसे प्राप्त होता है ? बंधुओ, अभी हमने यह जाना है कि संसार की किसी वस्तु में सच्चा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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