________________
सच्चे सुख का रहस्य
७७
हैं तो यह विचार करने लगी कि अगर मैं अभी ही रोना-पीटना प्रारम्भ कर देती हूं तो फिर यह बना बनाया स्वादिष्ट भोजन निरर्थक चला जाएगा, दूसरे मुझे न जाने कब तक भूखा मरना पड़ेगा । लोग तो अभी इकट्ठे हो जायेंगे।
यह सोचकर वह चुपके से रसोईघर में गई और भर-पेट खाना खा लिया। तत्पश्चात् वापिस पति के पास आई और जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया । तुरंत ही लोग इकट्ठे हो गये और पूछने लगे...."यह कैसे क्या हो गया ?" स्त्री बोली-मुझे तो पता नहीं शायद हार्ट फेल हो गया होगा क्योंकि थोड़ी देर पहले तो अच्छे थे ।'
पर मरने के बाद क्या होता है ? लोगों ने भी सोचा कि शीघ्र ले जाकर क्रिया-कर्म कर दें अन्यथा रातभर लाश पड़ी रहेगी। ज्यों ही वे लोग अर्थी पर रखने के लिए युवक को घर से निकालने लगे । एक खम्भे में युवक के पैर फंस गये । एकत्रित व्यक्तियों में से किसी ने कहा- 'जल्दी से खंभे को काट दो और पैर निकाल लो।''
यह बात सुनते ही पत्नी रोते-रोते बोली –'अरे ! खंभा मत काटो, पैर ही काट लो । खंभा फिर कौन अभी बनवाएगा ? और पैर तो आखिर जलाये जाने ही हैं।"
लोगों ने सोचा यह भी ठीक है । उन्होंने पैर काटने के लिए कुल्हाड़ा मंगवाया पर इतने में ही वह युवक आंखें मलते हुए उठ बैठा और बोला"क्या कर रहे हैं आप लोग ? मैं अभी मरा नहीं हूं।" ___ लोग इस आश्चर्यजनक घटना को ईश्वर का चमत्कार समझकर लड़के को आशीर्वाद देते हुए अपने अपने घर चले गए। पर लड़का वहाँ से उठकर सीधा महात्मा जी के पास आगया और बोला--"भगवन ! आपका कथन सत्य है कि स्त्री भी अपने स्वार्थ के लिए ही पति का प्यार करती है अन्यथा नहीं ।" यह कहकर वह पुनः घर नहीं गया और स्वयं भी साधु बन गया। यही बात ऋषि याज्ञवल्क्यने मैत्रेयी से कही थी- .
न वाऽरे पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति ।
आत्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति ॥ अर्थात्-अपने मतलब के लिए ही स्त्री को पति प्यारा होता है । पति के लिए स्त्री को पति प्यारा नहीं होता है ।
कहने का अभिप्राय यही है कि नारी के सुख को सुख मानना भी निरर्थक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org