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आनन्द-प्रवचन भाग ४
रहना चाहिये क्योंकि इन्हें पलटते देर नहीं लगती । एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है
पैर काट डालो, खंभा मत काटो ! कहते हैं- एक सेठ का पुत्र नित्य किसी महात्मा के पास सत्संग के लिये जाया करता था। उसके माता-पिता को यह देखकर बड़ो चिन्ता हुई कि कहीं उनका पुत्र नित्य ही वैरागियों की संगति में रहकर साधु न बन जाय । अतः उन्होंने शीघ्र ही एक सुन्दर कन्या के साथ उस लड़के का विवाह कर दिया और पुत्रवधु से कहा- 'तू इसकी ऐसी सेवा-टहल और मनोरंजन कर कि यह महात्मा के पास जाना छोड़ दे ।''
बहू ने ऐसा ही किया तथा अपने आकर्षक व्यवहार से श्रेष्ठिपुत्र को इतना मुग्ध कर लिया कि उसने धीरे-धीरे महात्मा के पास जाना छोड़ दिया। ___ एक दिन महात्मा जी कहीं जा रहे थे कि संयोगवशात् वही सेठ का पुत्र उन्हें मार्ग में मिला । महात्मा जी ने कहा--"वत्स ! आजकल तो तुम दिखाई ही नहीं देते । क्या कारण है ?"
श्रेष्ठि पुत्र सहजभाव से बोला- "भगवन ! मेरी पत्नी बड़ी पतिव्रता है । वह मुझ पर जान देती है और मेरे बिना क्षण भर भी अकेले नहीं रह सकती। उसका सच्चा प्रेम देखकर में उसके वशीभूत हो गया है, इसलिए आपके पास नहीं आ पाता।
महात्मा जी ने कहा-भाई ! इस संसार में सब स्वार्थ से प्रेम करते हैं। तम्हारी पत्नी भी केवल अपने सुख के लिए ही तुमसे प्रीति रखती है। अगर विश्वास न हो तो परीक्षा करके देख लो !'
श्रेष्ठि पुत्र की भी कौतूहल वश पत्नी की परीक्षा करने की इच्छा हो गई और उसने महात्मा जी से परीक्षा करने की विधि पूछली ।
एक दिन अपनी योजना के अनुसार वह अपनी पत्नी से बोला--'आज तो मेरा मन खीर पूरी खाने का हो रहा है।" पत्नी बोली- "इसमें क्या बड़ी बात है, अभी बना देती हूं।"
युवक को तो अपनी स्त्री की परीक्षा लेनी थी। अतः जब उसकी पत्नी भोजन बनाकर उसे खाने के लिये बुलाने आई तब तक वह श्वास को ब्रह्मरंध्र पर चढ़ाकर मृतकवत् पड़ गया।
उसको स्त्री यह देखकर घबराई और चिन्ता के मारे अपने पति की नाड़ी वगैरह देखकर परीक्षा करने लगी कि क्या हुआ ? जब उसने देख लिया कि कहीं भी नाड़ी का स्पंदन नहीं हो रहा है और पति तो मर चुका
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