________________
आनन्द-प्रवचन भाग-४
किसी ने सत्य ही कहा है:
कितने मुफलिस हो गये, कितने तवंगर हो गये।
खाक में जब मिल गये, दोनों बराबर हो गये । तो बन्धुओ, कहने का अभिप्राय यही है कि अन्तिम अवस्था तो प्रत्येक जीव की समान ही होती है तथा अमीर और गरीब दोनों ही मरकर भस्म हो जाते हैं । न निर्धन का थोड़ा भी धन उसके साथ जाता है और न अमीर का अधिक।
इसलिये अगर सच्चे सुख की आकांक्षा है तो आपको अपना सारा ही समय पर-पदार्थों के संचित करने में तथा उनके द्वारा विषयों को तप्त करने में नहीं लगाना चाहिये । तथा जैसा कि अभी कहा गया है घड़ी दो घड़ी ईश-चिन्तन, साधना तथा समाधिभाव में लगाना चाहिये । ऐसा करने पर निश्चय ही आपके लिये सच्चे सुख का खजाना खुल जाएगा और आपको अपूर्व और कल्पनातीत सुख का अनुभव होने लगेगा। ऐसे सुख का, जिसके समक्ष संसार का परिग्रहजनित सुख तुच्छ, नगण्य एवं सर्वथा निस्सार प्रतीत होता है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org