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________________ घड़ी से, घड़ी दो घड़ी लाभ उठा लो ! तो बंधुओ, उस धनी युवक को संसार का यह अस्थायी और कर्म-बंधन करने का कारण जो धन है, उसका त्याग करके धर्माराधन करते हुए ईश्वर की प्राप्ति का सुमार्ग किसने बताया ? संत ईसा ने ही तो। पर अगर वही व्यक्ति संयोगवश किसी दुराचारी की संगति में पहुँच जाता तो क्या होता, जानते हैं आप ? निश्चय ही वह उस भोले युवक को भी सट्टा और जुआ खेलना अथवा शराब पीना सिखा देता । क्योंकि शराबी शराब पीकर अपने आपको जीवित ही स्वर्ग में पहुँचा हुआ मानते हैं तथा संसार का सबसे सुखी प्राणी समझते हैं । इधर वह धनी युवक सुख की खोज में तो था ही फिर पतन के गर्त में गिरते उसे क्या देर लगती ? कहा भी जाता है: - 'Winc has d'owned more men than the sea. -साइरस सागर की अपेक्षा शराब ने अधिक मनुष्यों को डुबाया है । कहने का अभिप्राय यही है कि कुसंगति जहाँ मनुष्य को निगोद और नरक की ओर पहुँचाती है वहाँ सत्संगति उसे स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति भी करा देती है। कविता के अन्त में कहा गया है करो ग्रहण शिक्षा कुछ चंदन घड़ी से, ___गई हाथ गिज न आती घड़ी है। __श्री चंदन मुनि का कथन है कि घड़ी से कुछ शिक्षा ग्रहण करो, अन्यथा ये जीवन की सुनहरी घड़ियाँ निरर्थक चली जाएगी और लाख प्रयत्न करने पर भी एक भी घड़ी पुनः हाथ नहीं आएगी। बंधुओ, जीवन के विषय में बड़ी गंभीरता से विचार करना चाहिये । हम देखते हैं कि आज असंख्य मनुष्य अपना जीवन बिता रहे हैं । वे जीते हैं किन्तु ऐसे व्यक्ति उनमें से कितने हैं जो जीवन की सफलता के विषय में विचार करते हैं ? लोग बाजार जाते हैं, पर दो पैसे की भी कोई वस्तु लेते हैं तो पहले ही उसके उपयोग का विचार करते हैं तथा कोई न कोई उद्देश्य बनाकर उस वस्तु को घर पर लाते हैं । और लाने के पश्चात् भी उस वस्तु का वही उपभोग करते हैं, जिस उद्देश्य से उसे खरीदा था। खरीद लेने के बाद उस वस्तु को निरर्थक पड़ी रखकर कभी भी नष्ट नहीं होने देते। फिर मानव जीवन तो अमूल्य है और ऐसे अनमोल जीवन की उपेक्षा करके इसे नश्वर सांसारिक सुखों को भोगने में व्यतीत कर देना कितनी बड़ी भूल है ? क्या एक बार यह दुर्लभ जीवन वृथा चला जाने पर पुनः जल्दी प्राप्त हो सकेगा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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