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आनन्द-प्रवचन भाग-४
कहा है-'अगर तुम्हें साँप-बिच्छू काट खांय तो भी कोई हर्ज मत समझो। आग में जलने, जल में डूबने और पहाड़ से गिरने में भी कोई हानि मत मानो किन्तु दुर्जनों की संगति को कभी अच्छा मत समझो।' ___ आप सोचेंगे कि ऐसा क्यों ? सर्प डस जाय, शेर खा जाय या अग्नि में जलकर मर जाय तो उसे भी भला क्यों मानना, जबकि कुसंगति करने पर भी प्राण-हानि तो नहीं होती। इसका उत्तर पाने के लिये हमें दूर दृष्टि से देखना होगा । वह यही है कि अभी बताई गई समस्त हानियों में केवल इतना ही होता है कि एक बार मरना पड़ता है। किन्तु अगर मनुष्य कुसंग में पड़कर निबिड़ कर्मों का बंधन कर लेता है तो उसे न जाने कितने काल तक, कितनी योनियों में जन्म लेकर पुनः पुनः मरना पड़ जाता है। नरक और निगोदादि के दुख एक बार मरने से अनन्त गुना अधिक भोगने पड़ते हैं। आपने पढ़ा और सुना भी होगा कि नरक में शरीर पारे के समान बार-बार बिखरता है और जुड़ता है । तो क्या उससे अनन्त वेदना नहीं होती ? होती है। इसीलिये उन घोर दुःखों की अपेक्षा एक बार मरना कम कष्टकर है ।
इसीलिये सत्संग करना आवश्यक ही नहीं वरन् अनिवार्य है। संतों के अलावा कोई भी, अज्ञानी प्राणी को मुक्ति का सही मार्ग नहीं बता सकता।
अमरत्व की प्राप्ति कैसे हो ? कहा जाता है कि एक धनी युवक ने एक बार ईसामसीह से प्रार्थना करते हए कहा- ''देव ! मुझे अमरत्व की प्राप्ति का उपाय बताइये । मैं इस दुनिया के धन-वैभव से बहुत ऊब गया है। लाख प्रय न करने पर भी इसके द्वारा मुझे शान्ति और सच्चा सुख हासिल नहीं होता।"
ईसामसीह ने अत्यन्त स्नेह पूर्वक उस युवक की बात का उत्तर दिया"वत्स ! तुमने मुझे देव कहकर सम्बोधित किया, यह तुम्हारी भूल है । देव तो केवल परम पिता परमात्मा ही है। मैं तो उनका एक मामूली सेवक हूँ। फिर भी तुम्हें बताता हूँ कि अगर तुम सच्चे दिल से अमर-जीवन की प्राप्ति के इच्छुक हो तो जाओ अपनी समस्त सम्पत्ति निर्धनों में बाँट दो। क्योंकि यह तो संभव है कि ऊँट सुई की नोंक में से निकल जाय, पर यह असंभव है कि धनी व्यक्ति ईश्वर के राज्य में प्रवेश करके अमरत्व को प्राप्त कर ले ।
धनी युवक ईसा की बात से बड़ा प्रभावित हुआ और उसने अविलंब अपना सब कुछ अभावग्रस्त व्यक्तियों को दे दिया तथा स्वयं परमात्मा की भक्ति में लीन हो गया।
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