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________________ घड़ी से, घड़ी दो घड़ी लाभ उठा लो ! ६७ होता हआ भयानक कर्मों का बंध करके जन्म-जन्म तक उन्हें भोगने के लिये बाध्य हो जाता है। इसलिये मनुष्य को नीच पुरुषों की संगति से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिये पर जो ऐसा नहीं करते और कुसंगति के कारण अपने जीवन में कुविचारों का विष घोलते हैं उनके लिये कवि वृद कहते हैं आप अकारज आपनो, करत कुसंगति साथ । पाय कुल्हाड़ा देत है. मूरख अपने हाथ ।। वास्तव में यह कान सत्य है कि मनुष्य बुरे व्यक्तियों की संगति अपनाकर अपने पैरों में यं ही कुल्हाड़ी मारता है, अर्थात् अपना घोर अहित करता है। किन्तु वही व्यक्ति अगर संत-पुरुषों का समागम अल्प समय के लिये भी कर लेता है तो अपने जीवन को शुद्धि की ओर ले जाता है। डाकू अंगुलिमाल ने भगवान बुद्ध के तनिक से संपर्क से ही अपने कुख्यात जीवन को त्यागकर उच्च जीवन जीने का संकल्प कर लिया । छ: व्यक्तियों की प्रतिदिन हत्या करने वाला अर्जुनमाली सेठ सुदर्शन के क्षणिक संसर्ग से ही भगवान महावीर स्वामी के समीप पहुँचकर मुनि बन गया। सत्संग का ऐसा ही अद्भुत प्रभाव होता है। इसीलिये घड़ी कहती है कि दुनियादारी के प्रपंचों में लगे होने पर भी कम से कम घड़ी दो घड़ी संत-जनों का समागम किया करो। थोड़ा सा समय भी चिंतन-मनन, कीर्तन अथवा धर्मोपदेश सुनने में बिताया करो ताकि उस सब के प्रभाव से अगर कभी कुसंग हो भी गया तो वह निष्फल चला जाएगा यानी सत्संग से मन पर जो सुविचारों का असर होगा, उनके कारण कुविचार अपना स्थान नहीं बना सकेंगे। कवि सुन्दरदास जी ने भी दुर्जनों की संगति का घोर विरोध करते हुए कहा है-- सर्प डसे सु नहीं कछ तालक, बीछु लगै सु भलो करि मानो। सिंह हु खाय तो नाहिं कछू डर, जो गज मारत तो नहिं हानौ । अग्नि जरौ जल बूड़ि मरौ, गिरि, जाई गिरो, कछ भै मत आनौ । सुन्दर और भले सब ही यह, दुर्जन-संग भलौ नहिं जानौ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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