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________________ घड़ी से, घड़ी दो घड़ी लाभ ले लो ! कान से सुन ली और उस कान से निकाल दी। अगर गम्भीरता से विचार किया जाय तो यह जीवात्मा के परलोक की ओर कूच करने की नौबत है जो एक-एक क्षण के व्यतीत होते ही बज जाती है कि मनुष्य को प्रत्येक क्षण सतर्क और सावधान रहना चाहिए, क्योंकि कहा नहीं जा सकता किस पल में सफर का पैगाम आ जाये । अभी मैंने बताया था कि व्यक्ति एक दिन का ही नहीं वरन् महीनों और वर्षों के प्रोग्राम बनाता है जबकि उसे अपने अगले पल का भी पता नहीं रहता कि उस पल भी मैं जीवित रहूंगा या नहीं। परमात्मा हंस पड़ता है कहते हैं कि ईश्वर दो अवसरों पर हंसता है। प्रथम तो तब, जबकि वैद्य या डॉक्टर रोगी के माता-पिता से कहते हैं --'फिक्र मत करो, हम तुम्हारे पुत्र को अवश्य ठीक कर देंगे।' ___उस समय ईश्वर मुस्कराते हुए मन में कहता है-"मैं इस रोगी के प्राण लेने वाला हूं और ये कहते हैं हम इसे बचा लेंगे।" यह तो ईश्वर के एक बार हंसने का कारण हुआ। दूसरी बार वह तब हंसता है जब कि लोग आपस में बड़ी भयंकरता से धन, मकान, जमीन आदि के लिए झगड़ते हैं। ईश्वर उस समय सोचता है-"सम्पूर्ण विश्व तो मेरा है, लेकिन ये मूर्ख संसार की इन तुच्छ वस्तुओं को ही मेरी-मेरी कह रहे हैं, ऐसा अन्य ग्रंथों में देखने को आया है। ___ अभिप्राय यही है कि मनुष्य चाहे संसार की समस्त संपत्ति को अपने अधिकार में कर ले और उसके बल पर चाहे जितने मंसूबे क्यों न बाँधे पर जिस दिन मौत का नगारा बजेगा उसे सब छोड़-छाड़ कर उसी दिन कूच कर जाना पड़ेगा । घड़ी यही हमें बताती है । .कविता में आगे दिया गया है ये दुनिया सरा है और तू है मुसाफिर । चला चल, चला चल ये गाती घड़ी है। अर्थात्-ये दुनिया एक सराय है और प्राणी मुसाफिर । सब जीवात्माएँ यहाँ अपने अपने कर्मों के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेती हैं और कुछ काल पश्चात् अपना-अपना समय पूरा करके चल देती हैं। ____पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल ने अपनी 'भावना' नामक पुस्तक में भी लिखा है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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