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________________ ६२ आनन्द-प्रवचन भाग – ४ हैं, कौन सा कार्य करना अवशेष है और क्या क्या करने योग्य अनुष्ठानों का मैं आचरण नहीं करता हूं । दूसरे लोग मुझ में क्या दोष देख रहे हैं ? मुझे स्वयं अपने आप में क्या दोष दिखाई देते हैं ? क्या मैं इन दोषों का त्याग करने के लिए प्रयत्न कर रहा हूं ? इस प्रकार के विचार वही व्यक्ति कर सकता है जो गफलत की निद्रा से जाग जाय । प्रमाद आत्मा के लिए घोर निद्रा है और अप्रमाद जागरण । घड़ी का अलारम ऐसे ही धर्म जागरण के लिए प्रेरित करता है । आगे कहा गया है - समय जा रहा है न आएगा वापिस, सबक रोज सबको सिखाती घड़ी है । बीता हुआ समय पुनः कभी लौटकर नहीं आता । भक्ति तथा प्रार्थना आदि से परमात्मा को तो बुलाया जा सकता है किन्तु कोटि प्रयत्न करने पर भी गये हुए समय को पुनः नहीं लाया जा सकता । इस प्रकार समय को हम परमात्मा से भी शक्तिशाली और महान कह सकते हैं । हमारा बिगड़ा हुआ जीवन पुनः सुधर सकता है, बिसरी हुई विद्या याद आ सकती है, छिना हुआ राज्य भी फिर प्राप्त हो जाता है तथा अनन्त पुण्य कर्मों के फल-स्वरूप पाया हुआ मनुष्य जन्म भी खो जाने पर कदाचित दुबारा मिल सकता है किन्तु कभी भी दुबारा जो प्राप्त नहीं हो सकता वह केवल समय ही है अतः उसे व्यर्थ न खो कर एक-एक क्षण का हमें लाभ लेना चाहिए यही घड़ी कहती है । साधारणतया हम देखते हैं कि व्यक्ति क्षणों का कोई महत्त्व नहीं मानते और एक-एक क्षण करके ही जीवन की अनेकानेक सुनहरी घड़ियाँ व्यर्थ गंवा देते हैं । वे भूल जाते हैं कि लक्ष्य-सिद्धि के लिए प्रत्येक क्षण अपनी बड़ी भारी कीमत रखता है तथा किसी भी शुभ कार्य के लिए शुभ घड़ी या शुभ मुहूर्त खोजना व्यर्थ है । जिस समय भी व्यक्ति अपना उद्देश्य बनाए वही क्षण उस कार्य के प्रारम्भ के लिए शुभ है । अन्यथा भगवान महावीर गौतम स्वामी से पुनः पुनः क्यों कहते - 'समयं गोयम ! मा पमायए ।' यानी हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत करो। आगे पद्य में कहा हैं न जाने सफर पेश आ आ जाये किस दम, सदा कूच नौबत बजाती घड़ी है । कवि का कहना है कि घड़ी की आवाज़ केवल आवाज़ ही नहीं है जो इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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