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________________ घड़ी से, घड़ी दो घड़ो लाभ ले लो ! ६१ अमर है किन्तु यह मानव-शरीर तो अमर नहीं है, कभी भी यह नष्ट हो सकता है । संसार में देखा जाता है कि कोई व्यक्ति हास-परिहास में निमग्न है किन्तु क्षण भर में ही वह जमीन पर लुढ़क जाता है और उसकी आत्मा इस देह से कूच कर जाती है । कोई साधारण सी ठोकर लगते ही उस सड़क पर पुनः चलने के बजाय किसी अदृश्य दिशा की ओर गमन कर जाता है । अगणित मनोरथों को पूरा करने का जोड़-तोड़ करता हुआ व्यक्ति किसी भी पल अपने संकल्पों को सदा के लिए त्याग करने को बाध्य हो जाता है तथा इस बात को सार्थक करता है - आगाह अपनी मौत से कोई बशर सामान सौ बरस का पल की ख़बर मृत्यु तो मनुष्य को एक पल का भी अवकाश नहीं देती । अपनी अथाह सम्पत्ति, और अनेकानेक स्वजनों को छोड़कर उसे काल के एक संकेत मात्र से अकेले ही अपने कर्मों का भार लादकर चल देना पड़ता है । नहीं । नहीं ॥ आशय यही है कि मनुष्य को मृत्यु ध्रुव यानी अनिवार्य है । तथा उसके आने का समय भी निश्चित नहीं है अतएव प्रत्येक विवेकशील प्राणी को अपने जीवन की महत्ता तथा उसकी नश्वरता को समझकर समय से पूर्व ही जाग जाना चाहिए | कवि ने कहा भी है जो गफलत की नींद में सोए हैं इन्सां । अलार्म से उनको जगाती घड़ी है । प्रमाद मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है, जो उसकी समस्त इच्छाओं और गुणों पर पानी फेर देता है और जीवित प्राणी को मृतक के समान बनाकर छोड़ता है । अतएव प्रत्येक मुमुक्षु को गफलत की अथवा प्रमाद की निंद्रा का त्याग करके प्रबुद्ध हो जाना चाहिए । भगवान महावीर स्वामी का आदेश भी यही है अप्पमप्पणं । जो पुव्वरत्ता वररत्तकाले, संपिक्खए कि मे कडं किं च मे किच्चसेसं, कि सक्कणिज्जं न समायरामि । किं मे परो पासइ किं च अप्पा, कि वाहं खलियं न विवज्जयामि । इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो अणागयं नो पडिबन्ध कुज्जा ।। - दशवैकालिक, चूलिका २-१२-१३ रात्रि के प्रथम एवं अंतिम प्रहर में अर्थात् - साधक को चाहिये कि वह स्वयं आत्मा का निरीक्षण करे और विचारे कि मैंने कौन से कर्त्तव्य कार्य किये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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