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निर्गुणी को क्या उपमा दी जाय ?
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सार यही है कि मनुष्य ने यह अमूल्य जीवन प्राप्त कर लिया है तो वह सद्गुणों का संचय करे जिससे उसकी आत्मा शुद्ध होती हुई उन्नत बने तथा अपने समस्त कर्मों का क्षय करके संसार से मुक्त हो सके ।
किन्तु ऐसा तभी हो सकता है जब कि वह ज्ञान हासिल करे तथा शील का पालन करते हुए दान देवे और यथाशक्य तपश्चरण करे । इन समस्त गुणों का संचय किये बिना तो उसका जीवन पशु की कोटि में भी नहीं रहेगा। अभी-अभी आपने सुना ही है कि गुणहीन अर्थात् निर्गुणी व्यक्ति को तो हरिण और गाय क्या, श्वान तक भी अपनी तुलना में नहीं रखने देता। तो क्या मनुष्य को संसार की चारों गतियों में से सर्वश्रेष्ठ योनि प्राप्त कर लेने पर भी पशुओं से बदतर जीवन बिताना चाहिए ? नहीं, उसे समस्त श्रेष्ठ गुणों का संचय करके पाँचवीं या सर्वोत्कृष्ट गति मोक्ष की प्राप्ति का प्रयत्न करना चाहिए तभी उसका मानव पर्याय सार्थक हो सकेगा।
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