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________________ निर्गुणी को क्या उपमा दी जाय ? को अन्न नहीं खिला सकते तो कम से कम उसे प्रेमपूर्वक ठंडा पानी तो पिलाओ जिसके लिये पैसे भी नहीं देने पड़ते । और अगर तुम किसी को दूध नहीं दे सकते क्योंकि उसमें सार है, मलाई के रूप में, तो कम से कम मक्खन निकाली हुई छाछ तो उसे प्रदान करो। ___ मंदसौर में एक श्रावक गौतम जी वाघ्या रहते थे। उनके घर की स्थिति अच्छी थी यानी वे धन से सम्पन्न थे। पर पैसे के साथ ही उनमें उदारता भी बहुत थी। कभी उनके घर कोई तपस्वी बहन छाछ मांगने आती और वे जान लेते कि यह तपस्विनी है तो कहते.-. "बहन, आज छाछ नहीं बची दूध ही ले जाओ।" कभी कहते तुम्हारा बर्तन छोटा है, बड़ा ले आओ और छाछ देते तो चुपके से उसमें मक्खन की टिकिया भी डाल देते । ऊपर से जरूरत के अनुसार रुपये भी दिया करते थे। ऐसे उदार और गुणवान व्यक्ति अगर समाज में अधिक संख्या में हों तो हमारा समाज अति श्रेष्ठ और उन्नत बन सकता है। समाज का कोई सदस्य भूखा व वस्त्रहीन नहीं रह सकता। ___ सर्वश्रेष्ठ गुणशील __ इस संसार में मानव के आचरण को दूषित करने वाले नाना प्रकार के प्रलोभन होते हैं । धन को प्राप्त करने के लिये वह अनेक पाप करता है, पुत्रपौत्र, पत्नी तथा अन्य परिजनों के मोह वशात् वह भांति-भांति की बिडम्ब. नाएं सहता है तथा प्रसिद्धि और कीर्ति प्राप्त करने के लिये भी आकाश और जमीन के कुलाबे मिलाता रहता है । अभिप्राय यह है कि इन प्रलोभनों के वश में होकर वह अनेक कुकर्म करने से नहीं चूकता। किन्तु इन समस्त प्रलोभनों से भी बड़ा जो प्रलोभन है, वह है कामविकार । यह विकार मनुष्य के जीवन को पतन की ओर ले जाता है तथा वरदान बनने के बदले घोर अभिशाप बन जाता है। सिक्खों के धर्मग्रन्थ में कहा गया है - यां ते काम मूल मन जान, ऊपर विकार कीड़ फल जान । जब ही मूल को देहि उखेर, साखा पत्र न फलिहें फेर ॥ अर्थात् - यह काम विकार एक विकारवृक्ष की जड़ के समान है । अन्य विकार इसी की शाखाएँ और पत्ते हैं । यदि इस मूल को उखाड़ दिया जाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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