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आनन्द-प्रवचन भाग-४
आरम्भ किया। और इस बार जिसे हम सबसे निकृष्ट प्राणी कहते हैं तथा दिन भर में सैकड़ों बार दरवाजे पर से दुत्कार कर भगाते हैं उस श्वान यानी कुत्ते को ही निर्गुणी की तुलना में लाकर खड़ा कर दिया । और भर्तृहरिजी के श्लोक में पुनः परिवर्तन किया।
येषां न विद्या न तपो न दानम्
ज्ञानम् न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुविभारभूताः, ___ मनुष्य रूपेण श्वानो भवन्ति ।
___क्या निर्गुणी श्वान से भी गया-बीता है ? बंधुओ ! आप देख ही रहे हैं कि कवि लोग गुणहीन व्यक्ति की उपमा देने के लिये कितने परेशान हो रहे हैं ? पहले वे हरिण को इस कार्य के लिये लाये । किन्तु जब सही तर्क देते हुए उसने इससे स्पष्ट इन्कार कर दिया तो फिर उन्होंने गाय को चुना । पर गाय ने भी अपने अनेक गुण बताते हुए अपनी उपमा निर्गुणी व्यक्ति के लिए देने से मना किया तो वे खोज-खाजकर कुत्ते को लाए हैं । यह सोचकर कि कुत्ता तो संसार में सबसे निकृष्ट प्राणी माना जाता है और इसीलिये किसी को अत्यन्त तुच्छ साबित करने के लिये कुत्ता कहकर गाली देते हैं । तो अब वे सोच रहे हैं कि निर्गुणी व्यक्ति कम से कम कुत्ते से गया-बीता तो नहीं होगा । तभी कहा है
मनुष्य रूपेण श्वानो भवन्ति ।' - यानी निर्गुणी मनुष्यों के रूप में श्वान के सदृश होते हैं ।
पर कवि के ऐसा कह देने से क्या होता ? कुत्ता गाय नहीं था जो अपने आप को निर्गुण कहने पर शांति से उत्तर देता । वह तो यह बात सुनते ही भड़क उठा
श्वान तो कहत भक्त, स्वामी को हूँ निशदिन, निंदरा अलप मोहे, अधिक हुशारी है।' चार ही अंगुल टुक, रोटी खाय काढू दिन, संतोष करूं मैं मन, चोर करू जारी है। उद्यमी मैं निशदिन, आलस न मुझ अंग, पोंच देखी काम करू, अधिक लाचारी है ।
और भी अनेक गुण मोय में नराधिपत, निगुणी की उपमा न लागत हमारो है ।
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