________________
निर्गुणी क क्या उपमा दी जाय ?
५१
सब चीजों से भिन्न-भिन्न प्रकार के पौष्टिक पदार्थ बनते हैं, जो शरीर को स्वस्थ और सबल बनाते हैं ।
दूसरा गुण गाय अपना यह बताती है कि 'मैं गोबर प्रदान करती हूँ जिसके द्वारा घर के फर्श तथा रसोई आदि को लीपकर शुद्ध व साफ किया जाता है तथा उसे सुखाकर उपले बनाते हैं जो भोजन बनाने के लिये जलाये जाते हैं । गोमूत्र भी अनेक दवाइयों में काम आता है तथा गंदे स्थानों पर उसे छिड़ककर स्थान की शुद्धि भी की जाती है । किन्तु क्या निर्गुण मनुष्य का मल मूत्र इस प्रकार किसी कार्य में व्यवहृत हो सकता है ? नहीं, फिर भाई, कैसे निर्गुणी के लिये मेरी उपमा देते हो ?"
आगे भी वह कहती है- 'अभी तक तो मैंने अपनी विशेषताएँ बताई हैं, अब मेरे पुत्र की बात भी सुनो ! मेरा पुत्र बैल खेतों में हल चलाता है, जिसकी मेहनत से लोगों को पेट भरने के लिये अन्न मिलता है । वह कुए पर रहट खींचता है जिससे शाक-भाजी और फूल-फुलवारी सींचे जाते हैं । मेरा पुत्र बैलगाड़ी के द्वारा नित्य मनों बोझ इधर से उधर ले जाता है । अगर बैल न हों तो मनुष्य के अनेक कार्य सम्पन्न होने कठिन हो जाँय । कांग्रेस भी बैल का ही चित्र अपने चुनाव चिह्न में लेती है, क्योंकि बैलों को धोरी कहा जाता है यानी कि सम्पूर्ण बोझ को उठाने वाला । क्या मेरे पुत्र बैल की बराबरी मनुष्य कर सकता है ? नहीं, तो फिर निर्गुणी की उपमा भी उससे नहीं दी जा सकती ।"
वस्तुतः गाय को उपयोग की दृष्टि से बड़ा लाभदायक और धार्मिक दृष्टि से पूज्य माना जाता है । महाभारत में वेद व्यास जी ने कहा है
गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किञ्चिदिहाच्युत ! कीर्तनं श्रवणं दानं दर्शनं चापि पार्थिव ।
गवां प्रशस्यते वीर सर्व पापं हरं शिवम् ॥
अर्थात् — मैं इस संसार में गायों के समान दूसरा कोई धन नहीं समझता । गायों के नाम और गुणों का कीर्तन श्रवण, गायों का दान तथा उनका दर्शनइनकी बड़ी प्रशंसा की गयी है । यह समस्त कार्य सम्पूर्ण पापों को दूर करके परम कल्याण को प्रदान करने वाले हैं ।
तो बंधुओ, निर्गुणी पुरुष को गाय की उपमा देना भी निरर्थक और गलत हो गया । पर आखिर उसे किसी न किसी के समान तो बताना ही है। अतः कवि लोगों ने फिर किसी को उसकी उपमा देने के लिये खोज करना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org