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निर्गुणी को क्या उपमा दी जाय ?
उन्होंने वर्षों के परिश्रम के बाद बाणभट्ट को कादम्बरी का प्राकृत में अनुवाद किया । जब अनुवाद पूरा हो गया तो उन्होंने उसे राजा के समक्ष उपस्थित किया।
राजा यश-लोलुपी थे। उन्होंने धनपाल से कहा-"इस ग्रन्थ के साथ मेरा नाम जोड़ दो तो मैं तुम्हें इच्छित स्वर्ण मुद्राएँ दूंगा।" किन्तु धनपाल धर्मात्मा थे अतः उन्होंने ऐसा गलत काम करने से इन्कार कर दिया था। ____बस फिर क्या था ? राजा आग बबूला हो गया और यह सोचकर कि मेरा आश्रित पंडित ही मेरी बात नहीं मानता, उसने वर्षों के परिश्रम से तैयार किया हुआ अनुवाद अपने कर्मचारियों के द्वारा अग्नि की भेंट चढ़ा दिया।
इसी प्रकार बादशाह अकबर ने भी सुप्रसिद्ध कवि गंग को हाथी के पैरोंतले कुचलवा दिया था, क्योंकि कवि ने अकबर को अपनी कविता में सर्वोपरि बताने पर भी ईश्वर के पश्चात् अर्थात् दूसरा दर्जा दे दिया था। इसीलिये लोग कहा करते थे- "भगवान के घर का तेड़ा (बुलावा) भले ही आ जाय पर राजा के घर का न आये।"
पर सदा ही ऐसा नहीं हुआ करता था । राजा दयालु भी होते थे और वे अपनी प्रजा के लिये अपनी उदारता का प्रयोग भी दिल खोलकर करते थे। ____एक बार महाराजा रणजीतसिंह की सवारी शहर से गुजर रही थी कि अचानक एक मिट्टी का ढेला उनके मस्तक पर आ लगा। कर्मचारी इधरउधर दौड़े और एक बुढ़िया को पकड़ लाए, जिसने वह ढेला फेंका था ।
। पूछने पर उसने कहा- हुजूर ! मेरा लड़का तीन दिन से भूखा था अतः मैंने इस वृक्ष पर से एक फल तोड़ने के लिये ढेला फेंका था, आपको मारने के लिये नहीं।"
बुढ़िया की बात सुनकर महाराज ने अपने कर्मचारियों को आज्ञा दी"इस वृद्धा को खजाने से एक हजार रुपये और आज के लिये तैयार रसोई दिलवा दो।"
लोगों के आश्चर्य प्रकट करने पर वे बोले
"जब यह मन-हीन वृक्ष भी ढेला फेंकने वाले को पका फल प्रदान करता है तो क्या मैं इससे भी गया-बीता हूँ जो ढेला मारने वाले को उलटा दंड दूं?"
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