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________________ निर्गुणी को क्या उपमा दी जाय ? किन्तु उसके विरोध में पूज्यपाद श्री लोक ऋषि जी म० ने हरिण के मन की बात अपनी लेखनी के द्वारा बताते हुए प्रकट किया है कि हरिण कभी भी अपने आपको निर्गुणी व्यक्ति के समकक्ष नहीं रखना चाहता और इसीलिये उसने अपने अनेक गुण बताते हुए भर्तृहरि के विचारों का खंडन कर दिया है । तो अब पुनः यह समस्या सामने आ गई कि फिर निर्गुणी मनुष्य की उपमा किससे दी जाय ? आखिर किसी न किसी के जैसा तो वह होगा ही । तो किसी मनचले कवि ने राजा भर्तृहरि के कथन में थोड़ा सा परिवर्तन करते हुए कह दिया- येषां न विद्या न तपो न दानम्, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्यु लोके भुविभारभूताः, मनुष्य रूपेण धेन्वश्चरन्ति || आशा है श्लोक में किया गया थोड़ा सा परिवर्तन आपकी समझ में आ गया होगा । वह यही है कि जिस गुणहीन व्यक्ति में विद्या, तप, दान, ज्ञान, शील तथा धर्म आदि कोई भी विशेषता नहीं है, वह पृथ्वी पर भारभूत है तथा मनुष्य के रूप में गाय के समान है । ४७ तो भाई ! अब निर्गुणी को गाय के समान बना दिया । किन्तु मैंने अभी कहा था न, कि कवि निडर और जिद्दी होते हैं । पूज्यपाद तिलोक ऋषि जी म० ऐसे ही तो कवि थे । उन्होंने गाय पर लगाया हुआ आरोप उसे जाकर बता दिया और गरीब गाय ने अत्यन्त दुखी होकर जो जबाब दिया उसे ज्यों का त्यों अपनी कविता में गूँथ दिया । वही मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि निर्गुण कह देने पर गाय क्या कहती है ? सुरभि कहत तृण, खाय के उदर भरू, मालिक को देऊ खीर, अमृत जहारी है । दधि लूणी घृत आदि, होत है अनेक रूप, पंचेन्द्रिय पुष्ट होय, खावे नर नारी है । छाना हो से होत है रसोई पुनि लोपे घर, पुत्र मुझ खेती करे, भार पाड़े भारी है। और भी अनेक गुण, मोय में नराधिपत, निर्गुणी की उपमा न लागत हमारी है ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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