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लुब्धक, धीवर, पिशुना, fasकारणवैरिणोः जगति ॥
आनन्द-प्रवचन भाग - ४
पद्य में कहा गया है— हरिण, मछली और सज्जन ये तीन प्राणी हैं जो क्रमशः तृण यानी घास, जल और संतोष के द्वारा ही अपना जीवन शांति पूर्वक व्यतीत करते हैं किन्तु फिर भी हरिण के पीछे शिकारी, मछलियों के पीछे धीवर और सज्जनों के पीछे दुर्जन व्यक्ति पड़ ही रहते हैं ।
तो हरिण कह रहा है — मैं किसी का कभी अहित नहीं करता फिर भी मुझे मारकर मेरा मांस लोग खाते हैं, और इस प्रकार मेरा मांस भी निरर्थक नहीं जाता। जबकि मनुष्य का मांस किसी काम नहीं आता ।
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अब नम्बर आता है मेरी खाल का ! सींग और मांस जिस प्रकार काम आते हैं, उसी प्रकार मेरी खाल भी व्यर्थ नहीं जाती । अमीर व्यक्ति मेरी खाल को अपने ड्राइंग रूप में सजाकर रखते हैं तथा योगी और संन्यासी मृगचर्म को बिछाते हैं । यह बात 'जहारी' अर्थात् जगत प्रसिद्ध है । विद्वद्वर्य पं० शोभा चंद्र जी भारिल्ल ने भी कहा है
गाय भैंस पशुओं की चमड़ी, आती सौ सौ काम । हाथी दांत तथा कस्तूरी, बिकती मंहगे दाम ॥ नर तन किन्तु निपट निस्तार, हंस का जीवित कारागार ।
जूते, बेल्ट आदि
द्वारा स्त्रियों की
पद्य में बताया है कि गाय, भैंस आदि पशुओं की चमड़ी सैकड़ों वस्तुओं के निर्माण में काम आती है, हाथी के दांतों चूड़ियाँ तथा अनेक अन्य कलापूर्ण कृतियां बनाई जाती हैं । मृग आदि में रही हुई कस्तूरी भी अनेक रोगों के लिए संजीवनी का काम करती है तथा बड़ी मँहगी बिकती है । किन्तु मनुष्य के शरीर की एक भी वस्तु किसी काम नहीं आती । मनुष्य शरीर वास्तव में पूर्णतया निस्सार है केवल आत्मा के लिये कारागार अवश्य है ।
इसलिए हरिण का कहना है कि मुझमें अनेक गुण हैं अतः मेरी तुलना निर्गुणी से करना उचित नहीं है ।
निर्गुणी गाय जैसा ही सही
बंधुओ ! अभी मैंने आपको बताया था कि जो व्यक्ति यह दुर्लभ मानवजीवन पाकर विद्या हासिल नहीं करता, तपश्चरण नहीं करता, दान नहीं देता, शील का पालन नहीं करता, और आत्म-ज्ञानप्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करता ऐसे धर्महीन तथा गुणहीन मनुष्य को श्री भर्तृहरि ने पृथ्वी पर भारभूत और मनुष्य के रूप में हरिण के समान बताया है ।
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