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________________ निर्गुणी को क्या उपमा दी जाय ? के द्वारा ऐसा कर भी लेते हैं । पर जो विवेकहीन और अदूरदर्शी व्यक्ति होते हैं, वे इसे पाकर भी निरर्थक खो देते हैं। तो किनका मनुष्य जन्म निरर्थक जाता है ? और उनके विषय में क्या कहा जा सकता है ? इस विषय में भर्तृहरि ने एक बड़ा सुन्दर श्लोक लिखा है--- येषां न विद्या, न तपो न दानम्, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुविभारभूताः __ मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ - जिन व्यक्तियों में विद्या, तप, दान, ज्ञान एवं शील आदि गुण नहीं हैं तथा उनके मानस में धर्म का अस्तित्व भी नहीं है, वे इस मृत्युलोक की भूमि पर भारभूत ही साबित होते हैं तथा जिस प्रकार वन में मृग अर्थात् हरिण केवल अपना पेट भरते हुए निरर्थक जीवन यापन करते हैं इसी प्रकार गुणहीन व्यक्ति भी हरिणवत् केवल अपना पेट भरते हुए अपनी जिन्दगी निरर्थक व्यतीत कर देते हैं। जहाँ न पहुँचे रवि, तहाँ पहुँचे कवि बन्धुओं, यह बात सुनकर आप लोगों को बड़ा अटपटा लगा होगा कि इस समय महाराज ने किस प्रसंग में ऐसी बात कह दी। पर मैं आपके समक्ष इसी बात को खुलासा करने जा रहा हूं कि अभी मुझे कवियों का ध्यान कैसे आया ? बात यह है कि 'भर्तृहरि' ने निर्गुणी पुरुषों को हरिण की उपमा अपने श्लोक में दी है । निर्गुणी को हरिण की उपमा देना सभव है अनेक व्यक्तियों को अच्छा न लगा होगा । किन्तु वे इस बात का विरोध नहीं कर सके । पर आप जानते हैं कि कवि किसी से नहीं डरते। वे निर्भय होकर अपनी कल्पनाओं के द्वारा आकाश, पाताल, सूर्य चन्द्र और अधिक क्या, सृष्टि के प्रत्येक कोने तक दौड़ लगाया करते हैं। पाश्चात्य दार्शनिक शेक्सपियर ने भी कवि के विषय में बड़े सुन्दर ढंग से कहा है The Poets eye in fine frenzy rolling. Doth glance from heaven to earth and earth to heaven. अर्थात्-सौन्दर्य के मद में झूमती हुई कवि की दृष्टि स्वर्ग से पृथ्वी तक और पृथ्वी से स्वर्ग तक विचरण करती रहती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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