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प्रीति की रीत ... प्रेम बढ़ाने का तीसरा साधन था मन की गुप्त बात कहना और यह चौथा कारण है दूसरे के मन की बात पूछना। पढ़ने और सुनने में यह बात छोटी लगती है किन्तु महत्त्व की दृष्टि से कम नहीं है। ___ किसी दुखी और चिन्ताग्रस्त व्यक्ति को हम देखते हैं तो स्पष्ट महसूस होता है कि उसके दिल पर दर्द का मानों पहाड़ ही खड़ा है । किन्तु जब हम सहानुभूतिपूर्वक उससे उसके दुःख का हाल सुन लेते हैं, उसे सान्त्वना देते हैं और बन सके तो उसके दुख-निवारण का कोई उपाय बता देते हैं तो वह व्यक्ति अपने आपको बड़ा हलका मससूस करता है और हमारे प्रति प्रेम व्यक्त करता हुआ कृतज्ञता प्रदर्शित करता है। ___ कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी ही हांके जाते हैं, औरों की कुछ नहीं सुनते । ऐसे व्यक्ति से सुनने वाला उकता जाता है और उससे पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करता है। किन्तु जो व्यक्ति अपनी कहता है, उसी प्रकार प्रेम से दूसरे की भी सुनता है वह सभी का शीघ्र ही प्रिय-पात्र बन जाता है । इसलिये आवश्यक है कि अगर अपनी दूसरों से कहो तो दूसरों की भी अवश्य सुनो । तभी आपस में प्रेम बढ़ सकता है।
(५) भुक्ते-प्रेम बढ़ाने का पांचवाँ कारण है खाना। खाने से यहां आशय अपने घर में बैठकर अपना ही भोजन करने से नहीं है वरन् औरों के द्वारा प्रेम से खिलाये जाने वाले भोजन से है। .
भले ही आप श्रीमंत हैं किन्तु आपका कोई गरीब मित्र या संबंधी अपनी किसी खुशी के अवसर पर आपको आमंत्रित करके आपके सामने अपनी हैसियत के अनुसार रूखा-सूखा भोजन रखता है तो बिना नाक-भौंह सिकोड़े. हुए प्रेम से उसे ग्रहण करना चाहिये । अनेक व्यक्ति तो यही मानकर नियम ले लेते हैं कि सामने आए हुए अन्न का कभी अनादर नहीं करूगा भले ही उसमें से एक ही ग्रास क्यों न खाऊँ क्योंकि अन्न हमारे लिये देवता के समान
पूज्य है।
___ आज के अधिकांश व्यक्ति जो कि अमीर होते हैं, वे गरीब के घर खाने तो क्या जाएंगे, उनसे बात करने में भी अपनी हेठी समझते हैं । वे भूल जाते हैं कि जिस धन का हम गर्व करते हैं उसका अन्त क्षय या वियोग ही है। और कोई भी लाभ उससे होने वाला नहीं है। बाल्मीकि रामायण में कहा भी है:
सर्वेक्षयान्ता निचयाः पतनान्ता समुच्छ्याः । संयोगा विप्रयोगान्ता, मरणान्तं च जीवितं ।।
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