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आनन्द-प्रवचन भाग -४
उपालम्भ देकर स्वयं ही वह भेंट ले लेते हैं और प्रेम-वश चावल कच्चे ही खाने लग जाते हैं । कथा बड़ी है अतः प्रसंगानुसार थोड़ा सा मैंने बताया है।
सारांश यही है कि इस प्रकार स्नेहपूर्वक किसी का दिया हुआ लेने पर परस्पर प्रेम की वृद्धि होती है। . (३) गुह्यमाख्याति--प्रेम-वृद्धि में तीसरा कारण है अपने मन की गुप्त बात कह देना । जिस व्यक्ति पर विश्वास हो उससे मन की न बतानेवाली बात कहने से सुनने वाले का स्नेह बढ़ता है और उसे प्रसन्नता होती है कि मुझे विश्वास के योग्य माना है । दूसरे, कहते हैं कि मन की व्यथा कहने से मन हलका हो जाता है और कभी-कभी सुननेवाले के द्वारा किसी समस्या का हल भी निकल आता है ।
किन्तु ऐसी गुह्य बातें कहने से पहले, सुनने वाले को खूब ठोक-बजा लेना चाहिये । अगर वह ओछे दिल वाला हुआ तो कहने वाले को संसार के सामने उपहासप्रद या अपमानित बनाकर छोड़ेगा और ऐसे व्यक्ति से कुछ कहना खतरे से खाली नहीं होगा। एक दोहे में कहा गया है:
कपटी मित्र न कीजिये, पेस-पेस बुध लेत ।
पहले ठांव बताइ के पीछे गोता देत । यानी कपटी मनुष्य जो मित्रता का दम भरते हैं, वे भुलावा देकर किसी व्यक्ति के मन का भेद तो निकाल लेते हैं, किन्तु फिर उसे प्रकाशित करके व्यक्ति को संसार के सामने मुंह दिखाने लायक भी नहीं रखते। ऐसे धूर्त व्यक्ति ऊपर से तो नम्रता, पवित्रता और मित्रता का दावा करते हैं किन्तु उनके अन्तर में कपट का विष भरा होता है। किसी कवि ने सत्य ही कहा हैः
मुखं पद्मदलाकारं, वाचा चन्दन-शीतला।
हृदयं कर्तरीतुल्यं, धूर्तस्य लक्षण त्रयम् ।। तात्पर्य यह कि-धूर्त व्यक्ति के तीन लक्षण होते हैं प्रथम धर्त का मुख कमल के पत्ते के समान कोमल होता है। दूसरे, उसकी वाणी चन्दन के समान शीतल होती है । तीसरे, उसका हृदय कैंची के समान होता है ।
इसलिये ऐसे व्यक्तियों से भूलकर भी मन की गुप्त बातें नहीं कहना चाहिये अन्यथा लेने के बदले देना पड़ सकता है।
(४) पच्छति- यह अभी बताए गए तीसरे कारण का उलटा है । अर्थात्
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