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आनन्द-प्रवचन भाग-४
ददाति, प्रतिगृहाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति ।
भुक्ते, भोजयते चैव, षड्विधं प्रीति लक्षणम् ॥ श्लोक में प्रेमवर्धन के छः कारण या प्रेम के छः लक्षण बताए हैं। इनमें से पहला है -
(१) ददाति ददाति यानि देना । देने से प्रेम बढ़ता है। आप अपने किसी भी सुहृद-संबंधी को अपने हाथ से उपहार देंगे तो उसका आपके प्रतिप्रेम बढ़ेगा । हम देखते भी हैं कि एक व्यक्ति जिसके बगीचे में आम, अनार या अमरूद, कोई भी वस्तु पैदा होती है तो वह समय-समय पर उन्हें अपने मित्रों या सगे-संबन्धियों के यहाँ भेजता है । इसका क्या कारण है ? क्या जिनके यहाँ वे फल अथवा अन्य कोई वस्तु भेजी जाती है, उन्हें वह प्राप्त नहीं होती ? नहीं, कमी उसके यहाँ भी कुछ नहीं है किन्तु व्यक्ति एक-दूसरे के यहाँ ये वस्तुएं स्नेह-संबंध बढ़ाने के लिए भेजते हैं।
देने के महत्त्व का आप सभी को भली-भांति अनुभव है। क्योंकि आप आए दिन किसी के जन्मदिन की या शादी-विवाह में दी जाने वाली पार्टियों में सम्मिलित होते हैं । और उनमें जाते समय कुछ न कुछ उपहार लेकर ही जाते हैं, चाहे वह आभूषण हो, वस्त्र हो, पुस्तक, पैन या कोई भी छोटीबड़ी वस्तु हो । वह आप क्यों देते हैं ? जो व्यक्ति अपनी.लड़की के विवाह पर हजारों रुपये खर्च करता है उसे चन्द रुपयों में खरीदी हुई आपकी वस्तु की कोई आवश्यकता नहीं है। किन्तु वह उसे प्रेम का उपहार समझकर ग्रहण करता है । सिर्फ इसलिए कि उसका आपके साथ मधुर सम्बन्ध कायम रहे । वह उपहार की कीमत नहीं देखता, देखता है उसके पीछे रहे हुए आपके स्नेह को। क्योंकि देने वाले का हृदय उपहार को अत्यन्त प्रिय और मूल्यवान बना देता है। ___इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को देने का महत्व समझकर उससे स्नेह-प्राप्ति का लाभ उठाना चाहिए।
(२) प्रतिगण्हाति- इसका अर्थ है-बदले में लेना। आप सोचेंगे यह भी कोई प्रेम बढ़ाने का साधन है ? लेने से तो उलटा प्रेम घटता है । पर नही, ऐसी बात नहीं है। प्रेम उस लेने से घटता है जो किसी से जबर्दस्ती लिया जाता है । जैसे चोरी करके, छीन करके, ब्याज या कर के रूप में लेकर के या फिर हैसियत न होने पर भी दहेज आदि की मांग करके । संक्षेप में, कोई देना न चाहता हो, फिर भी उससे लिया जाय तो अवश्य प्रेम घटता है।
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