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प्रीति की रीति' ...
धर्म प्रेमीबन्धुओ, माताओ एवं बहनो । - कल हमने संगठन की महत्ता पर विचार किया था और यह भी समझाया था कि संगठन की आधारशिला प्रेम है। जब तक समाज के सदस्यों में एक दूसरे के प्रति प्रेम-भाव नहीं होता तब तक वे सभी संगठित होकर किसी उद्देश्य के लिए प्रयत्न नहीं कर सकते। इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अन्य सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, सद्भावना और उदारता हो । संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है
___'उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।' यानी जिसका चित्त उदार है उसके लिये तो केवल अपना परिवार, समाज या देश ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व ही कुटुम्ब के समान है । संसार के प्रत्येक प्राणी को वह अपना कुटुम्बी समझता है ।
वास्तव में अन्तःकरण ऐसा ही उदार और विशाल होना चाहिए। जिस व्यक्ति का अन्तःकरण उदार और प्रेमानुभूति से आप्लावित होगा, उसका जीवन संपूर्ण संसार के लिये आकर्षण का केन्द्र बन जाएगा।
प्रेमोत्पत्ति के सहायक कारण ___ अब हमें यह देखना है कि अन्तःकरण में प्रीति की उत्पत्ति और उसका वर्धन कैसे हो सकता है। क्योंकि 'प्रेम बढ़ाओ !' यह कहने मात्र से तो किसी के हृदय में प्रेम जगाया नहीं जा सकता। उसके लिये अपने व्यवहार में परिवर्तन करना पड़ेगा। और वह किस प्रकार किया जा सकता है, यह हमें एक संस्कृत का श्लोक बताएगा
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