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आनन्द-प्रवचन भाग-४
कितनी उदारता थी उन महापुरुषों की अन्य दर्शनों के प्रति ? किन्तु आज ? आज हम अपने एक धर्म को भी अलग-अलग रखकर उसे अलग-अलग बाने पहनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। इससे केवल हानि ही हो रही है। लाभ कुछ भी नहीं। कितना अच्छा हो कि हम सब इन बातों के चक्करों को छोड़ कर अहिंसा, संयम और तप रूप महान् धर्म की उसके शुद्ध रूप में ही आराधना करें।
पर इसके लिए हमें अपने अहं का त्याग करना होगा। अपनी प्रसिद्धि, अपनी प्रतिष्ठा और अपने नेतापने की आकांक्षा को तिलांजलि देनी होगी संगठित होकर भगवान महावीर के आदर्शों पर पूर्ण रूप से चलना पड़ेगा । वीतराग पुरुषों द्वारा प्रदर्शित साधना-मार्ग को जब-हम ग्रहण करेंगे तभी हम अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे और मुक्ति का भव्य द्वार हमारे लिये खुल सकेगा।
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