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________________ मोक्ष का द्वार कैसे खुलेगा ? २६ भवन में ही ज्ञान की समुज्ज्वल ज्योति कषाय-रूपी आँधी से बची हुई आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी। पर यह सेवा-कार्य हो कैसे ? तभी, जबकि प्रत्येक समाज के व्यक्ति में प्रेम की भावना ओर संगठित होकर कार्य करने की लगन हो । __समाज के प्रत्येक सदस्य को चाहे वह बालक हो, युवक हो और वृद्ध हो, सभी को अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार कार्य करना होगा । अपनी-अपनी ढफली और अपना अपना राग।' बजाने से तो सामाजिक व्यवस्था सुधारने की बजाय और भी बिगड़ जायगी। हमारा जैन-धर्म एक विश्व-प्रसिद्ध धर्म है तथा संसार इसका आदर व सम्मान करता है। किन्तु आज इसी के अनुयायी इसे टकड़ों में बांटकर स्वयं धर्म गुरु बनना चाहते हैं। इससे क्या लाभ होगा ? सभी बिखर जायेंगे और अशक्त बनकर औरों से टक्कर लेने की क्षमता खो बैठेंगे । एक कहावत भी है- "बंधी मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाक की।" ____ अर्थ स्पष्ट है कि एक होकर रहने में ही लाभ है और समाज तथा धर्म का गौरव है । इसके विपरीत अपनी इच्छानुसार धर्म के विभिन्न रूप बनाकर उन्हें अपना-अपना मानने तथा एक दूसरे की खमियों का प्रदर्शन करने से धर्म के नाम पर ही धब्बा लगता है, जिस विशेष व्यक्ति के लिए कहा जाय वह तो गौण ही रह जाता है। हमारे प्राचीन धर्माचार्य और धर्म प्रचारक तो संसार के अन्य धर्मों का भी अपने धर्म के समान ही आदर करते रहे हैं । आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर का कथन इस बात का प्रमाण है • उदधाविव . सर्वसिंधवः, समुदीर्णास्त्वयि नाथ ! दृष्टयः । न च तासु भवान् प्रदृश्यते, प्रविभक्तासु सरित्स्विवोदधिः ।। -चतुर्थद्वात्रिंशिका, श्लोक १५ अर्थात्-हे नाथ ! जिस प्रकार सभी नदियां समुद्र में पहुँचकर सम्मिलित होती हैं उसी प्रकार विश्व के समस्त दर्शन आपके शासन में सम्मिलित हो जाते हैं । जिस प्रकार भिन्न-भिन्न नदियों में समुद्र दिखाई नहीं देता; उसी प्रकार भिन्न-भिन्न दर्शनों में आप दिखाई नहीं देते, फिर भी जैसे नदियों का आश्रय समुद्र है, उसी प्रकार समस्त दर्शनों का आश्रयस्थल आपका शासन ही है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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