SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्ष का द्वार कैसे खुलेगा? २७ उस व्यक्ति ने चौंककर पूछा-क्या थानेदार आपसे भी बड़ा है ?" पटेल ने हँसकर उत्तर दिया-"हाँ वह हमारे अफसर हैं !" .. ग्रामीण व्यक्ति यह सुनकर थानेदार की सेवा में पहुंच गया क्योंकि वह तो बड़ों की सेवा करना चाहता था । पर जब उसने थानेदार को अपने से बड़े अधिकारी का हुक्म मानते देखा तो वह उस अधिकारी के पास चल दिया। इस प्रकार बड़े से बड़े की सेवा करने की इच्छा रखने के कारण वह उस देश के राजा के पास पहुँचा और तन-मन से राजा की सेवा करने लगा। अपनी निःस्वार्थ सेवा-भावना के कारण वह कभी किसी को अप्रिय नहीं लगा था और इसीलिए शीघ्र ही राजा का भी प्रिय बन गया। ___ काफी समय गुजर जाने के बाद एक दिन उसे लेकर राजा जंगल में शिकार खेलने गया । पर शिकार की खोज में भटकते-भटकते रात हो गई, अतः उस जंगल में ही एक पेड़ के नीचे दोनों ने रात्रि व्यतीत करने का निश्चय किया । सेवाभावी ग्रामीण ने कहा-"महाराज ! आप सो जाइये, मैं जागता रहूँगा ताकि कोई वन्य-पशु आकर हमें कष्ट न पहुँचाए।" राजा ने यही किया, वह सो गया । किन्तु ठीक अर्ध-रात्रि के समय कुछ आहट पाकर राजा जाग उठा और उस व्यक्ति से बोला—'भाई ! कोई भूतों का झुड इधर आता हुआ दिखाई देता है । चलो जल्दी से पेड़ पर चढ़ जाएँ नहीं तो ये हमें मार डालेंगे।" __ वह व्यक्ति चकित हुआ और पूछ बैठा--"महाराज ! आप डर क्यों रहे हैं ? क्या ये आप से भी बड़े हैं ?" राजा बोला- "ये मेरे से ही क्या, मेरे पुरखों से भी बड़े हैं । चलो जल्दी करो पेड़ पर चढ़ जाँय ।" पर सेवा धर्म अपनाने वाला व्यक्ति फिर कहाँ ठहरता ? वह बोला"महाराज, अब मैं आपकी चाकरी नहीं करूंगा। मुझे तो बड़ों की ही सेवा करनी है।" ऐसा कहकर उसने राजा को तो पेड़ पर चढ़ा दिया और स्वयं निर्भीकता से उधर ही आने वाले उस टोले के नायक भैरवनाथ के समीप पहुँचा तथा उनसे कहने लगा-- "आप राजा से बड़े हैं अतः मुझे आपकी सेवा में रहना है।" भैरवनाथ उसे देखकर चकित हए किन्तु उसके भोलेपन पर प्रसन्न होकर उन्होंने उसे अपने साथ ले लिया और आगे चल दिये । किन्तु थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि एक मन्दिर दिखाई दिया जिसमें भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित थी । भगवान की मूर्ति देखकर भैरवनाथ काँप गए । यह देखते ही ग्रामीण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy