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________________ आनन्द-प्रवचन भाग-४ कि उसके सामने उसके माता-पिता हैं या मालिक, अथवा बहू है या बेटी। वह तो गुस्से के मारे अनर्गल गालियाँ या कटुवाक्य कहता चला जाता है । क्रोध की आग उसके अन्तर में रहे हुए स्नेह को भस्म कर देती है । . इसीलिये कवि को कहना पड़ा है कि आज का नवीन युग प्रेम का संदेश लाया है । प्रेम और संगठन के अभाव में न घर सुरक्षित रह सकता है, न समाज और न ही देश । उदाहरणस्वरूप-हमारे देश में भले ही अनेक पार्टियाँ थीं किन्तु जब चीन ने आक्रमण किया था, उस समय सभी ने संगठित होकर शत्रु का मुकाबला किया था और उस संगठन के परिणामस्वरूप उसे मुंह की खानी पड़ी थी। अभिप्राय यही है कि संगठन और प्रेम के बिना कहीं भी काम नहीं चलता और किसी भी कार्य में सफलता हासिल नहीं होती । अपने हाथ में पाँच अंगुलियाँ हैं। पर अगर इनमें एकता न हो तो क्या ये कोई भी कार्य सम्पन्न कर सकती हैं ? नहीं। भोजन का ग्रास पाँचों अंगुलियों से बनाया और मुह में डाला जाता है । अगर वे एक दूसरे से अलग रहकर कार्य करना चाहें तो यह कैसे संभव हो सकता है ? कौन सी एक अंगुलि भोजन का ग्रास मुंह तक ले जाने में समर्थ है ? एक भी नहीं। । पद्य में आगे कहा है-'टूटे हुए दिल को मिलने दो।' शब्द सरल हैं किन्तु भाव कितना सुन्दर है ? इसमें बताया है किसी का भी दिल तोड़ो मत वरन प्रेम से और मधुर वचनों से उसे जोड़ने का प्रयत्न करो। एक फारसी के कवि ने भी बड़ी सुन्दर बात कही है: अज बराए नरम -गुफ्तन शुद जबां बे उस्तखां । सरत-तंगो तुरश गुफ्तन नेस्त कोर आकिलां ॥ अर्थात्-जिह्वा में हड्डी इसीलिये नहीं रखी गई है कि यह कोमल शब्दों का उच्चारण करे। कटु और कठोर शब्द बोलना अक्लमंदों का कार्य नहीं है। वस्तुतः कटु वचन रूपी बाण बड़े तीखे होते हैं और उनका आघात छुरी तलवार आदि तीक्ष्ण शस्त्रों के आघात की अपेक्षा बहुत गहरा और दीर्घ काल तक दिल में चुभने वाला होता है। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह कटु वचनों से किसी का दिल तोड़ना नहीं, वरन मधुर वचनों से टूटे हुए दिलों को जोड़ना सीखे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004007
Book TitleAnand Pravachan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Kamla Jain
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1974
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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