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मोक्ष का द्वार कैसे खुलेगा ?
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. स्त्री की बात सुनकर जाट बड़ा शर्मिन्दा हुआ। वह समझ गया कि 'अपने मुंह मियाँ मिटू' बनने से कोई लाभ नहीं होता । व्यक्ति तभी ऊँचा कहलाता है जब उसकी योग्यता को देखकर संसार स्वयं ही उसे ऊँचा कहे ।
और ऐसा तभी हो सकता है जबकि व्यक्ति समाज में सबसे मिल-जुल कर रहे और अपने सद्व्यवहार से लोगों का हृदय जीत ले । कवि ने आगे कहा है
अब नया जमाना आया है, संदेश प्रम का लाया है।
टूटे हुए दिल को मिलने दो; संगठन की वीणा बजने दो। आशय है—आज का नवीन युग अपने साथ प्रेम का संदेश लेकर उपस्थित हुआ है। यह अपील करता है कि सब प्रेम पूर्वक रहो, प्रेम से अपने कर्तव्यों का पालन करो और प्रेम का ही एक दूसरे से व्यवहार रखो । इसी में मानव की महत्ता है । कबीर ने भी सीधे-सीधे शब्दों में कहा है--
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पडित हुआ न कोय ।
ढाई अच्छर प्रेम का, पढ़ सो पंडित होय ॥ वस्तुतः अहंकारी विद्वान् की अपेक्षा एक अज्ञानी किन्तु नम्र और स्नेह शील व्यक्ति अधिक अच्छा होता है।
जिसके हृदय में स्नेह का स्रोत प्रवाहित होता है वह अपने विरोधियों और कट्टर दुश्मनों को भी अपना बना लेता है। किन्तु इसके विपरीत जो अहंकारी और क्रोधी होता है वह अपनों को भी अपना बैरी बनाकर छोड़ता है। क्योंकि क्रोधावेश में वह भान भूल जाता है तथा जो नहीं कहना चाहिये वह कहता है तथा जो नहीं करना चाहिये वह कर बैठता है ।
अंग्रेजी में एक कहावत हैAn angry man opens his mouth and shuts his eyes.
अर्थात्-क्रोधी व्यक्ति अपने मुंह को खोल लेता है किन्तु आँखों को बन्द कर लेता है।
आप कहेंगे कि क्रोध में आँखें बन्द कहाँ होती हैं ? वे तो और बड़ी तथा लाल हो जाती हैं । आपका विचार गलत नहीं है। किन्तु यहाँ आशय मनुष्य के चर्म-चक्षुओं से नहीं, अपितु ज्ञान-नेत्रों से है। इसलिये ही यह कहा गया है। यह सत्य है कि जिस समय मनुष्य क्रोध में होता है, नहीं ध्यान रखता
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