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आनन्द-प्रवचन भाग-४ ।
और लयबद्ध स्वर-लहरी उठती है कि सुननेवालों का मन झूम उठता है, व्यक्ति मंत्र मुग्ध हो जाता है । इसका कारण क्या है ? केवल यही कि वीणा के सम्पूर्ण तार संगठित होकर बजते हैं एक भी इधर-उधर नहीं होता।
जब वीणा के जड़ तार भी एक-दूसरे के सहायक होकर झंकृत होते हैं तथा लोगों को अपनी मधुर ध्वनि से मोहित कर लेते हैं तो फिर चैतन्य मानव ऐसा क्यों नहीं करते ? क्या वे भी संगटित होकर अपने समाज और देश में ऐसा आकर्षण पैदा नहीं कर सकते जिससे विश्व के अन्य देश भी प्रभावित हो जॉय ? अवश्य कर सकते हैं, किन्तु संगठित होना ही बड़ी बात है। आज का व्यक्ति तो केवल अपनी ही ख्याति चाहता है, भले ही समाज में फूट पड़े या देश रसातल को चला जाय । ___ इसीलिये में आप लोगों से कहता हूँ कि आप चाहे राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करते हों, सामाजिक क्षेत्र में करते हों या धार्मिक क्षेत्र में कर रहे हों संगठित होकर ही जो करना हो वह करिये । क्योंकि अकेले आप किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाएंगे। एक कहावत भी है—'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।' इसी प्रकार एक व्यक्ति समाज की गाड़ी को भी चला नहीं सकता।
एक फैक्टरी है। उसकी मशीन के सभी पुर्जे अगर बराबर काम करते हैं तो पूरी फैक्टरी चालू रहती है किन्तु फैक्टरी को चलाने वाली मशीन का एक पुर्जा भी अगर खराब हो जाता है या एक कील भी निकल कर गिर जाती है तो मशीन काम नहीं करती और सम्पूर्ण फैक्टरी का काम ठप्प हो जाता है। इसलिये मुख्य मशीन के सभी पुर्जे सलामत होने चाहिये। कोई भी एक पुर्जा यह नहीं कह सकता कि मैं ही सर्वेसर्वा हूँ। मेरे कारण ही . मशीन चल रही है। __इसी प्रकार समाज का प्रत्येक सदस्य समाज की शोभा है और उसे उन्नत बनाने का हकदार है । समाज का कोई भी व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि मेरे अभाव में समाज की कोई कद्र नहीं है । अगर वह ऐसा कहता है तो यह उसका थोथा अहंकार मात्र है। व्यक्ति का महत्त्व स्वयं उसके कहने से नहीं बढ़ता अपितु ओरों के कहने से बढ़ता है। ___एक जाट अपनी पत्नी से बोला--"तू मुझे पटेल कहा कर ।" जाटनी समझदार थी अतः मुस्कराती हुई अपने पति से बोली-"अजी, पटेल क्या कहूँ, मुझे ही कहना है तो फिर मैं तुम्हें राजा क्यों न कहा करूँ ?"
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