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मोक्ष का द्वार कैसे खुलेगा ?
पृथ्वी अब तक चुप थी पर चारों की गर्वोक्तियाँ सुनकर वह क्यों पीछे रहती ? वह भी बोल पड़ी—"अरे, तुम सब किस का घमंड कर रहे हो ? आखिर इस शरीर का निर्माण तो मुझसे ही हुआ है । मिट्टी के द्वारा ही इन्द्रियाँ बनी हैं, अन्यथा तुम क्या करते ? सच केवल यही है कि सारा कार्य केवल मेरे बल-बूते पर चल रहा है।"
इस प्रकार पाँचों ही तत्व अपने आपको महत्वपूर्ण और अनिवार्य साबित करने लगे। पर बंधुओ ! क्या आप बता सकते हैं कि इन पांचों में से कौनसा अधिक महत्वपूर्ण है और बाकी सब गौण ? आपका यही उत्तर होगा कि सभी महत्वपूर्ण है और एक दूसरे के पूरक हैं। आवश्यकता केवल उनके संगठित होकर रहने की है । क्योंकि सारा महत्व संगठन का ही है । भाइयो ! मैं भी आज आपको संगठन का महत्व बताने जा रहा हैं।
संघे शक्तिः कलौयुगे इस कलियुग में सबसे बड़ी शक्ति संगठन में है। सतयुग में इस बात का उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती थी क्योंकि व्यक्ति अपने आपको नेता नहीं मानता था, स्वयं को ही महापंडित नहीं कहता था और अपने माहात्म्य का प्रदर्शन नहीं करता था । कुछ विरले व्यक्ति ऐसे होते भी थे तो उनका पूरे समाज पर प्रभाव नहीं पड़ पाता था क्योंकि जनता जागरूक थी और वह सत्य की पहचान कर लेने के कारण उन व्यक्तियों के भुलावे में नहीं आती थी।
किन्तु आज का समय ऐसा है कि इस जमाने में चाहे सामाजिक क्षेत्र हो, धार्मिक हो, या राजनैतिक हो । इनसे संबंध रखनेवाले अधिकांश व्यक्ति अपने आपको ही सर्वोपरि मानते हैं और जनता को अपने ही मतानुसार चलाना चाहते हैं । भला ऐसी खींचा-तान करने से समाज कैसे टिकेगा ? वह तभी टिक सकेगा, यानी उसमें तभी व्यवस्था रहेगी जबकि सभी व्यक्ति संगठित होकर रहेंगे और एक दूसरे के विचारों का आदर करते हुए उचित मार्ग खोजकर उस पर बढ़ेंगे । एक भजन में कहा भी है
संगठन की वीणा बजने दो,
मोहे मधुर मधुर धुन सुनने दो। वीणा में सात तार होते हैं और वे अलग-अलग होने पर भी जब बजते हैं तो बेसुरें नहीं होते कि किसी का स्वर कान को फाड़ दे, किसी का सुनाई न पड़े, किसी का प्रिय न लगे या किसी का लय में न चले 1 हम देखते हैं कि अलग-अलग तार होने पर भी जब वीणा बजती है तो उससे इतनी मधुर
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