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आनन्द-प्रवचन भाग-४
अंधेरा हो जाएगा और फिर सिवाय भिन्न-भिन्न योनियों में भटकने के, और तेरा कुछ भी वश नहीं चलेगा।"
आगे कहा है- "तेरे शरीर में से एक-एक श्वास जो कि तीनों लोकों से भी अधिक मूल्यवान है, धीरे-धीरे चला जा रहा है। इनकी कीमत समझकर इनका उपयोग कर । मैं तो जिस प्रकार तुझे कहना चाहिये कह चुका पर तेरी समझ में कुछ आ नहीं रहा है तो अब क्या ढोल बजा-बजाकर तुझे कहूं ताकि तू सुन सके ?"
श्वास खरीदे नहीं जाते एक-एक श्वास की क्या कीमत है यह अंतिम समय में एक अमीर व्यक्ति को मालूम हुई जो मृत्यु-शैय्या पर पड़ा था। वह चाहता था कि पाँच मिनिट के लिये भी मुझमें बोलने की शक्ति आ जाय तो मैं अपना वसीयतनामा लिखवा दू। किन्तु श्वास समाप्त हो रहे थे और वह असमर्थ पड़ा हुआ अपनी विवशता पर आँसू बहा रहा था । अपनी कुछ सांसों के लिये वह मुह माँगा धन डाक्टरों को दे देना चाहता था किन्तु डाक्टरों के लाख प्रयत्न करने पर भी उस अमीर को चंद श्वास भी नहीं बढ़ सके और वह अपना मृत्यु पत्र लिखवाने की तमन्ना लिये हुए ही इस लोक से प्रयाण कर गया ।
स्पष्ट है कि वायु का इस शरीर के लिये बड़ा महत्व है और उसके अभाव में शरीर का काम नहीं चलता। किन्तु जब जल ने कहा कि 'मेरे बिना किसी का काम नहीं चल सकता' तो उसकी बात भी सत्य प्रतीत हुई । आखिर जल के अभाव में भी किसी का शरीर कभी टिका है ? जल तत्त्व न हो तो केवल अग्नि के कारण वह सूखकर लकड़ी नहीं हो पाएगा क्या ? तो वायु के समान जल का भी महत्त्व है।
अब बारी आई अग्नि तत्त्व की । वह भी अकड़कर बोला-'शरीर में सारा महत्व तो मेरा है । अगर मैं न होऊं तो इसमें डाला हुआ भोज्य पदार्थ कैसे पचेगा ? और फिर खाना पचने की ही बात काफी नहीं है, मेरे अभाव में तो तुम सब शरीर अंग बर्फ होकर रह जाओगे। इस प्रकार अग्नि का महत्व भी पूरा साबित हो गया। ___पर पूर्व के तीनों तत्वों की बातें सुनते ही आकाश भी भड़क गया । वह बोला-'मेरो क्या शरीर में कम महत्व है ? मैं हूं तो शब्दों का उच्चारण हो सकता है, अन्यथा नहीं । न्याय शास्त्र ने भी यही कहा है 'शब्दगुणकमा काशं ।" इस प्रकार शब्द है तो तो आपका समाज है, जीवन है । अतः मैं ही सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हूं।
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